-छात्रों को एआई स्किल से सुस्सजित करने की दिशा में भारत के तेजी से बढ़ रहे कदम
लियाकत मंसूरी
नित्य संदेश, मेरठ। विज्ञान और तकनीक की तेज़ी से बढ़ती इस दुनिया में भारत ने केवल बदलावों को देखने तक ही खुद को सीमित नहीं रखा है, बल्कि यह उसके अनुरूप काम करने और अपनी भावी पीढ़ी को इसके लिए तैयार करने के लिए नित नए कदम उठा रहा है। देश लगातार नए और भविष्योन्मुख कार्यक्रमों को आकार दे रहा है। यह आवश्यक भी है, क्योंकि तेजी से बदलती दुनिया में तकनीक हर रोज़ नई शक्ल ले रही है और हमारे जीवन को गहराई से प्रभावित कर रही है। उक्त जानकारी शुक्रवार को एमआईईटी के मीडिया प्रवक्ता इंजीनियर अजय चौधरी ने दी।
उन्होंने उदाहरण के लिए आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (एआई) के बारे बताया। कहा कि एआई ने हमारे हर काम को गहराई से प्रभावित करना शुरू कर दिया है। मोबाइल ऐप से लेकर खेती-बाड़ी और दवा तक, हर जगह इसके प्रभाव को महसूस किया जा सकता है। ऐसे में भारत सरकार के कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय (एमएसडीई) द्वारा हाल में शुरू किए गए एसओएआर (स्किलिंग फॉर एआई रेडीनेस) कार्यक्रम इसके मजबूत इरादों और दूरदृष्टि को दर्शाती है। यह राष्ट्रीय पहल ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर महानगरों तक के सभी छात्रों (कक्षा 6 से 12) और शिक्षकों के बीच एआई साक्षरता को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखती है। इसका उद्देश्य है भारतीय युवाओं को सुरक्षित, एआई-संचालित भविष्य के लिए तैयार करना और उन्हें आलोचनात्मक व विश्लेषणात्मक सोच की ओर प्रेरित करना। बताया कि आईटी क्षेत्र में विश्वभर में अपनी मजबूत पहचान बनाने वाले भारत में एसओएआर की आवश्यकता तकनीक के तेज रफ्तार द्वारा पैदा किया गए स्किल गैप की वजह से महसूस की गई। ऐसा अनुमान है कि 2030 तक आधे से अधिक भारतीय कामगारों को एआई और डिजिटल तकनीकों से जुड़ी नई क्षमताओं की ज़रूरत होगी। यदि समय रहते बच्चों और युवाओं को प्रशिक्षित नहीं किया गया, तो वे केवल उपभोक्ता बनकर रह जाएंगे। ऐसे में एसओएआर छात्रों को केवल तकनीक का उपयोग करने वाला नहीं, बल्कि डिजिटल भविष्य का सक्रिय निर्माता बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
ग्रामीण और शहरी छात्रों को जोड़ने की कोशिश
बताया कि भारत को आईटी क्षेत्र की तरह ही एआई में भी वैश्विक मंच पर मजबूत स्थिति में प्रस्तुत करना भी इस कार्यक्रम की शुरुआत का एक मुख्य कारण है। एक और खास वजह ये है कि भारत अपना ध्यान युवा शक्ति का उपयोग एआई और अन्य आधुनिक तकनीक के बेहतर इस्तेमाल और उसका पूरा लाभ उठाने पर केंद्रित कर रहा है। इससे निश्चित तौर पर तकनीक के क्षेत्र में भारत की महत्वाकांक्षाओं को बल मिलेगा, क्योंकि इससे नवाचार और उद्यमशीलता को बढ़ावा मिलेगा। यह पहल ग्रामीण और शहरी—दोनों इलाकों के छात्रों को जोड़ने की एक उम्दा कोशिश भी है। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि छोटे कस्बों या सरकारी स्कूलों के बच्चे भी भविष्य की तकनीकी दौड़ में पीछे न छूटें।
किताबों तक समिति नहीं रहेगा कार्यक्रम
एसओएआर मुख्यतः छात्रों में एआई की बुनियादी समझ विकसित करने पर केंद्रित है। यह केवल किताबों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके अंतर्गत छात्रों को कहानियों, खेल-आधारित पाठ्यक्रम और केस स्टडीज के ज़रिए सिखाया जाएगा कि आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस कैसे काम करता है। मशीन लर्निंग, नैचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग और न्यूरल नेटवर्क्स जैसी जटिल तकनीकों को भी आसान भाषा में समझाया जाएगा।
स्कूलों में बने रहें एआई प्रयोगशालाएं और क्लब
बताया कि उन्नत स्तर पर बच्चे कोडिंग, डेटा एनालिसिस और चैटबॉट बनाने जैसी गतिविधियों से जुड़ेंगे। इस कार्यक्रम का एक खास पक्ष नैतिकता पर ज़ोर देना है। कार्यक्रम यह सुनुश्चित करेगा कि छात्र केवल तकनीक का इस्तेमाल करना ही न सीखें, बल्कि यह भी समझें कि इसका समाज और देश के लिए सही उपयोग कैसे होना चाहिए। इसी कारण स्कूलों में एआई प्रयोगशालाएं और क्लब भी बनाए जा रहे हैं।
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