नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी के आवास पर भागवत की चौथे दिन की व्रतकथा हुई। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि यदि व्रतमय जीवन हो, तो जीवन जीने का नजरिया बदल जाता है। घटनाओं व परिस्थितियों को देखने में बदलाव हो जाता है। व्रत का इन्द्रियों व भौतिक साधनों से कोई सम्बन्ध नहीं है।
बताया कि व्रत द्वारा मन, बुद्धि, अहंकार और महत्तत्वादि को साधने का प्रयास करना होता है। हमारी दृष्टि कहां है, हम किस भाव से व्रत करते हैं, यही महत्वपूर्ण है। दृष्टि उपवास पर है, या उसके उपरान्त मिलने वाले फल पर है या मन भगवान पर केन्द्रित है। इसके अतिरिक्त पयोव्रत का विधान, वामन भगवान के जन्म की कथा, सत्यव्रत की कथा, विष्णु भगवान द्वारा सत्यव्रत द्वारा बीज एकत्रित कर नई सृष्टि की स्थापना करना। सत्यव्रत से इक्ष्वाकु, उनसे सूर्यवंश और चंद्रवंश की स्थापना हुई। राजा ययाति की कथा, उनका देवयानि व शर्मिष्ठा से विवाह, शुक्राचार्य का राजा ययाति को श्राप, यदुवंश का वृत्तान्त, कृष्ण जन्म का वर्णन किया गया। बुधवार को कृष्ण भगवान के व्रत, अनुव्रत और गोवर्धन पर्वत आदि की कथा होगी।
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