नित्य संदेश। राज्यसभा के नए मनोनीत सांसद, ये हैं सदानंद मास्टर जी भाई साहब। आप छह फिट ऊँचाई वाले, अच्छे शारीरिक के धनी व्यक्ति हैं, अपने विद्यार्थी जीवन के प्रारम्भिक काल में आप का संपर्क कम्युनिस्ट पार्टी से हुआ था, अपनी प्रतिभा और मेहनत के बल पर आप वहाँ सफल रहे, आप कवि, साहित्य प्रेमी और अच्छे खिलाड़ी भी रह चुके हैं।
साथ अकादमिक भी बढ़िया हैं, धीरे धीरे आपको वामपंथी विचारधारा की अक्षमता परकीय-निष्ठा पता चली, इन्हीं दिनों आप का सम्पर्क संघ से हुआ, कार्यकर्त्ताओं के सरल सात्विक और ऋषि तुल्य जीवन ने आपके ऊपर भी प्रभाव डाला, कालांतर में आप "अपरिचित से परिचित फिर स्वयंसेवक फिर अच्छे कार्यकर्त्ता" बन गए, आप ने प्रामाणिकता के साथ संघ कार्य करना शुरू किया, आप की मित्र मण्डली कम्युनिस्ट थी उसमें भी संघ पहुँचने लगा, आप कम्युनिस्ट गाँवों में निर्भीकता से प्रवास करने लगे, वहाँ संघ काम शुरू हो गया, ये सब देखकर कम्युनिस्टों ने सोचा कि इन सदानन्द को सजा देनी पड़ेगी, इसे ऐसी सजा दी जाए की न केवल ये याद रखें बल्कि संघ के लोग भी संघ काम करने से डरें।
इसकी ऊँचाई 6 फिट है, न इसलिए
इसकी ऊँचाई जरा 2 फिट कम कर दी जाए, ताकि
संघ की भी ऊँचाई कम हो जाए, इस प्रकार षड्यंत्र रच कर केरल के कम्युनिस्ट राज्य इकाई ने एक दिन शाखा से
लौटते हुवे सदानन्द जी को पीछे से पकड़ लिया। उनका गाँव भी कम्युनिस्ट गाँव ही था, जहाँ लाइट नहीं थी, भाई अगर विकास होगा तो
गरीब समझदार हो जाएगा न?? इसलिए उसे पिछड़ा ही
रहने दो, ताकि वो हमारी विषैली कम्युनिस्ट विचार का भक्ष्य रहें। इस प्रकार सदानन्द जी
को जमीन पर गिरा कर उन कम्युनिस्ट गुंडों ने कुल्हाड़ी के वार से घुटनों तक उनके
दोनों पैर काट दिए और वापस न जुड़ पाये इसलिए उनको जमीन से रगड़ते हुए जंगल में फेंक
दिए।
जब वो सदानन्द जी को काट रहे थे तब सदानन्द जी के मुँह से कराह नहीं वन्देमातरम
और भारत माता की जय के नारे निकल रहे थे। वे आह की जगह हिन्दू राष्ट्र का जयगान कर रहे थे,....... अद्वैत तत्व और कहते
किसे है?? जब व्यक्ति ध्येय से
एकाकार हो जाए,......उनकी आवाज सुनकर गाँव
से स्वयं सेवक दौड़कर आए, उस समय उनकी साँस उखड़
रही थी, बेहोशी छा रही थी....,,फिर भी होश था, उन्होंने स्वयं सेवकों
को पैर लाने को कहा, ताकि वो जोड़े जा सकें, सब स्वयंसेवक साश्रु
पूर्वक थे! ये सब सदानन्द जी देख
रहे थे, उनको 400 किमी दूर कोच्ची के
अस्पताल ले जाया गया, जिन कार्यकर्ता के गोद
में उनका सर था, वे जिला सम्पर्क प्रमुख
थे और निरन्तर अश्रु पात कर रहे थे,......उन्होंने देखा कि सदानन्द जी धीरे धीरे कुछ बोल रहे है, सोचा शायद हमला करने
वाले का नाम बता रहे हो, इसलिए कान उनके मुँह के
पास लगाया और चकित हो गए, जब सदानन्द जी ने पहली
शाखा देखी थी और उसमें गए थे.... तब पहली बार जिस गीत को सुना उसको दोहरा रहे थे,
क्या हुवा जो एक पत्ता,
टूट कर गिरा जमीन पर,
कल नई कोंपलें आएगी,
नव पर्ण से सजेगा वृक्ष,
एक सदानन्द गिरा,
मातृभूमि पर
दूसरा सदांनन्द आएगा,
हिन्दू राष्ट्र गौरव वैभव,
नित आगे बढ़ता जाएगा,
नित आगे बढ़ता जाएगा,
ये बात जब अन्य स्वयंसेवकों को पता चली तो सब के अश्रु रुक गए, सबमें स्वाभिमान का
संचार हुआ साहस का प्रसार हुआ, देव योग से सदानन्द जी बच गए पर उनके पैर मातृभू पर अर्पित हुए फिर भी वो
हँसते रहे, पिछले वर्ष जब प्रहार
महायज्ञ का आह्वान हुआ तो जयपुर फुट पहन कर आपने जिद करके सबके मना करने के बाद भी
49 प्रहार लगाये, दोनों पैरों में से खून
बहने लगा आप हँस रहे थे, कार्यकर्ताओं
के प्रेम से डाँटने पर बोले संघ का आग्रह है, अखिल भारत में
यज्ञ हो रहा है मैं क्यों रूकूँ?? आपने प्रवास करने के उद्देश्य से तिपहिया वाहन बनवा लिया ताकि नियमित प्रवास
कर सकें, जब आप पर हमला हुवा तो
आप के विवाह की बात चल रही थी....,,दोनों पैर काट गए तो
परिवार ने आगे बात नहीं बढ़ाई,......तो जिन से शादी की बात चल रही थी उन्होंने कहा कि मैं शादी करुँगी तो सदानन्द
जी से ही अन्यथा नहीं,....विवाह संम्पन्न हुआ और
वह महा ऋषिका भी सदानन्द जी के साथ हिंदुत्व का काम कर रही हैं,
धन्य है भारतीय नारी, और इनकी माँ... जिसने
ऐसे महान सपूत को जन्म दिया, धन्य है वह भारतीय नारी, जिसने सब जानते हुए भी उनसे विवाह किया, धन्य है केरल प्रांत की मलय भूमि जो इतने कष्ट सहन करते हुए भी संघ कार्य को
ईश्वरीय काम समझ निरन्तर कार्यकर्त्ता प्रदान कर रही है, निरन्तर संघ काम बढ़ रहा
है, बाकी जगह तो स्वेद
बून्द गिरती होगी यहाँ स्वयंसेवक अपने रक्त से मातृभू का 'अभिषेक' करते हैं, माँ के काम के लिए
मस्तक तक न्योछावर करते हैं, राज्यसभा में उनका मनोनयन उनके संघर्ष, तप और राष्ट्रनिष्ठा का गौरवपूर्ण सम्मान है।
प्रस्तुति
डॉ. विकास दवे
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