नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। आभा मानव मंदिर वरिष्ठ नागरिक सेवा सदन में शुभम करोति फाउंडेशन की ओर से श्री रामचरितमानस बालकांड के पांचवे दिन के प्रवचन में व्यासपीठ महामंडलेश्वर स्वामी अनंतानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि भगवान के अतिरिक्त जीव की कोई अभिलाषा ना हो।
संसार के जो साधन है उनकी सार्थकता यही है कि आपको भगवान की भक्ति में लगा दें ।जो संसार में अनित्य साधन मिले हैं इनका प्रयोग नित्य की प्राप्ति करने में कर ले यही जीवन की सफलता है ।ईश्वर से प्रार्थना करें कि हे प्रभु मेरे भीतर तो इतनी पात्रता नहीं कि मैं आपकी सेवा कर सकूं आप इतनी कृपा करो कि आपका कोई शरणागत, आपका कृपा पात्र जो संत हो गुरु हो उनकी कृपा मुझे प्राप्त हो जाए। उन्होंने कहा गुरु की आज्ञा मानना ही सबसे बड़ी सेवा है। जो अपने चरित्र के भीतर जन्म-जन्मांतर की वासनाएं, कामनाएं, तृष्णा है यह भगवत प्राप्ति में सबसे बड़ी बाधा है।
महादेव ऐसे गुरु हैं जो त्रिगुणातीत हैं वे शिष्य में वह सामर्थ्य उत्पन्न कर देते हैं कि वह स्वयं गुरु हो जाए ।उन्होंने कहा कि भगवान कभी भक्त का त्याग नहीं करते ऐसे ही गुरु कभी शिष्य का त्याग नहीं करता क्योंकि वे शिष्य का कल्याण चाहते हैं इसलिए उसके दोषों पर प्रहार करते रहते हैं ।
मनुष्य का एक ईष्ट हो, एक गुरु हो ,एक मंत्र हो ,एक ग्रंथ हो भक्ति में पहली संपत्ति इष्ट का वरण है।
शिवजी कहते हैं कि जब राम पृथ्वी पर आते हैं तब मैं उनके जन्म से लेकर बाल्य काल तक कैलाश छोड़कर अयोध्या में ही रहता हूं फिर पुनः कैलाश पर आ जाता हूँ।
सभी शास्त्रों की जो पूंजी है वह हमारे उपनिषद है।
शिवजी कहते हैं कि है पार्वती यह जो राम की कथा है यह बिल्कुल कामधेनु जैसी है यह जीव की सारी मनोकामना पूरी कर देती है, राम कथा की सेवा में जो कोई लगता है उसको यह राम कथा सब सुख देती है इसलिए जहां सत्संग होता है वहीं देवलोक है ,सतयुग है, वही ब्रह्मलोक है। व्यास पूजन धनपाल सिंह ने किया। सुरेश चंद्र गोविंल, आभा गोविंल , प्रियांक सिंघल, मंजू शर्मा आदि उपस्थित रहे।
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