बसा रखे थे पलकों किनारे, वो अब अछूते हुए।
आंखों में चुभते बहुत है, ख्वाब ये टूटे हुए।
ख्वाबों का गुलशन सजाया था,बड़े अरमानों से हमने।
एक पल को भी ठहरे नहीं, जाने कहां चलते हुए।
ज़िंदगी तेरी ज़ुल्फ़ों के साए में गुज़ारने की तमन्ना।
धूप की तल्ख़ियों में चलते-चलते,पांव में छाले हुए।
इक आशियाना मोहब्बत का दुनिया से बसाएंगे हम दूर।
निभाया ना गया दस्तूर-ए- मोहब्बत और जो वादे हुए।
मुश्किल ज़िंदगी का सफर और आसां ख्वाबों का बसर।
सफर ज़िंदगी का ना मुकम्मल, ना ख्वाब पूरे हुए।
चलता रहा संग संग हमारे खूबसूरत ख्वाबों का कारवां।
समेटने लगे तो कुछ बिखरे, कुछ ख्वाब ये टूटे हुए।
झूठे ख्वाबों की बंदिश पलकों पर ना सजाना "प्रीत"
निगाहों से होकर दिल करेंगे छलनी, ख्वाब ये चुभते हुए।
प्रीति धीरज जैन "धीरप्रीत"
इंदौर, मध्यप्रदेश ✍️✍️
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