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पावन भारत भूमि, जगह-जगह शिव के धाम,
बारह ज्योतिर्लिंग का स्मरण करो आठों याम।
प्रथम हैं सोमनाथ जी, काठियावाड़ की शान,
भक्तों को भक्ति, ज्ञान, सेहत का देते वरदान।
द्वितीय हैं मल्लिकार्जुन जी, श्रीशैलम में रहते,
कृष्णा तट पर शिव शक्ति संग में आशीष देते।
तृतीय हैं महाकालेश्वर जी, बसे क्षिप्रा के तट,
कालो के काल महाकाल, कष्ट काटें झट-पट।
चतुर्थ हैं ओंकारेश्वर जी, बैठे वे नर्मदा के तीर,
कण-कण में बसते शंकर, हरते वे सबकी पीर।
पंचम हैं केदारनाथ जी, डेरा हिमालय की चोटी,
बम-बम भोले बोलो, जीवन विपदा होगी छोटी।
षष्टम हैं भीमाशंकर जी, सह्याद्रि वन में विराजे,
महादेव सभी पाप दूर करते, उर में आनंद साजे।
सप्तम हैं त्र्यंबकेश्वर जी, पास गोदावरी बहती,
ब्रह्मा, विष्णु, महेश की कृपादृष्टि यहाँ बसती।
अष्टम हैं रामेश्वरम जी, करें सेतुबंध सिंधु वास,
राम जी के स्वामी रुद्र रूप में करें शत्रु विनाश।
नवम हैं काशी विश्वनाथ जी, निकट गंगा घाट,
मोक्षदायिनी नगरी में शिवलोक के खुलते पाट।
दशम हैं नागेश्वर जी, आसीन शिव दारुकावन,
भय, सर्पदोष से मुक्त हो, पाएँ सुख, अन्न-धन।
एकादश हैं बैद्यनाथ जी, बसे देवघर झारखंड,
दयालु बड़े, सब रोग हरते, बचता न शरीर दंड।
द्वादश हैं घृष्णेश्वर जी, एलागंगा बहती पास,
शांति, संतति से समृद्ध बनते, शिव के दास।
ये हैं द्वादश ज्योतिर्लिंग, शंभु के रूप निराले,
ध्याने से भूलोक से परलोक में शिव सँभाले।
सपना सी.पी. साहू 'स्वप्निल'
इंदौर (म.प्र.)
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