नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी के मयूर विहार स्थित आवास पर भागवत की पांचवे दिन की व्रतकथा हुई। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि
व्रत क्या है? कृष्ण ने सारे जीवन किस व्रत का निर्वाह किया? कृष्ण ने गोवर्धन धारण का व्रत लिया। एक व्रत रुक्मिणी का था, कृष्ण से विवाह करने का। एक व्रत गोपियों ने किया,
उन्होंने सारे जीवन कृष्ण के उपदेशों का पालन किया। व्रत में आराधना होती है व
उनको (कृष्ण) को पाने की इच्छा होती है।
कृष्ण लीलाओं का वर्णन किया गया। कृष्ण ने गलत आचरण को रोकने व रक्षा करने का
व्रत लिया। उन्होंने इन्द्र की उपासना को रोककर गोवर्धन की पूजा करवाई। उन्होंने 27
असुरों का वध किया। व्रत के विधान का वर्णन किया गया। व्रत भूखे रहने का, कष्ट झेलने का नाम नहीं
है। जिसमें रस पैदा हो, वह व्रत का वास्तविक स्वरूप है। रासलीला द्वारा कृष्ण ने यही
प्रदर्शित किया। व्रत का मूलरूप है कि कोई तैयारी नहीं, जैसे हो वैसे ही कृष्ण
की ओर चल पड़ो, अलग से कोई तैयारी नहीं
करनी। रासलीला का यही उद्देश्य था कि जो जिस स्थिति में था, वैसे
ही चल पड़ा। तत्पश्चात् कृष्ण भगवान का मथुरा जाना व सारी गोपियों का कृष्ण के
विरह में आतुर होना। यह व्रत का पहला लक्षण है। मन पूरा कृष्ण में होना चाहिए।
सारी लज्जा, संकोच छोड़ देना चाहिए, जो कि
व्रत के शत्रु हैं। 'गोविन्द दामोदर माधवेति' इस मंत्र का सभी
गोपियों ने जप किया। तत्पश्चात् कृष्ण का सांदिपनी ऋषि के आश्रम में जाना व उन्हें
गुरु दक्षिणा देने का व्रत निभाना। विदर्भराज की कन्या रुक्मिणी से कृष्ण का विवाह, रुक्मिणी ने कृष्ण को
पाने के लिए व्रत किया, व्रत कैसे करें? तीन चरण होते हैं व्रत
करने के, पहला-आराधना, दूसरा-व्रतकृष होना, तीसरा-मुनिव्रत
होना। गुरुवार व्रत की चरम परिणति
सत्र पर चर्चा होगी। नैमिषारण्य, कृतु व पतिव्रता के स्वरुप की कथा, सुदामा कृष्ण की कथा और यदुकुल के श्राप का वर्णन होगा।
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