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Tuesday, July 1, 2025

क्या प्राथमिक विद्यालयों का विलय शिक्षा का भविष्य संवार सकता है? डॉ. अनिल नौसरान


नित्य संदेश। आज जब देश शिक्षा में गुणवत्ता सुधार की ओर अग्रसर है, उत्तर प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों के विलय (मर्जर) का मुद्दा फिर से चर्चा में है। उत्तरप्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ इस प्रस्ताव का विरोध कर रहा है, लेकिन यह समय है जब हम संवेदना से अधिक विवेक और भावनाओं से अधिक दूरदर्शिता के साथ सोचे।

उत्तर प्रदेश के कई ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे प्राथमिक विद्यालय हैं, जहां छात्र संख्या 10 या उससे भी कम है, लेकिन इन स्कूलों को चलाने में वही संसाधन, वही भवन, वही शिक्षक और वही सरकारी खर्च लगता है जैसा एक बड़े स्कूल में लगता है। नतीजा यह होता है कि बच्चों को न तो समुचित पढ़ाई का माहौल मिलता है, न शिक्षकों को मूलभूत सुविधाएं जैसे बिजली, पीने का पानी या आवास। और न ही शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो पाता है। तो क्यों न हम 10 किलोमीटर के भीतर के सभी छोटे विद्यालयों को मिलाकर एक “केंद्रीय प्राथमिक विद्यालय” की स्थापना करें? जहां हो पक्की बिल्डिंग, जनरेटर और बिजली की सुविधा, स्मार्ट क्लास, स्वच्छ मिड-डे मील, खेल का मैदान और पुस्तकालय व स्वच्छ शौचालय।

आज हर गांव तक पक्की सड़क पहुंच चुकी है। बच्चों को एक स्थान पर एकत्रित कर एक बस द्वारा स्कूल पहुंचाना अब कोई असंभव कार्य नहीं। सुबह स्कूल और शाम को गांव वापसी सरल, सुरक्षित और सुव्यवस्थित। बच्चों को घर पर होमवर्क देने की बजाय विद्यालय में ही संपूर्ण शिक्षण कराया जाए, ताकि वे घर जाकर परिवार के साथ समय बिता सकें।यह न केवल बच्चों के लिए, बल्कि शिक्षकों के लिए भी एक बड़ा राहतकारी बदलाव होगा। आज शिक्षक दूरस्थ गांवों में पहुंचने में जिस मानसिक और शारीरिक थकान से जूझते हैं, उससे मुक्ति मिलेगी। जब एक ही स्थान पर सभी शिक्षक कार्यरत होंगे, तो न केवल उनका कार्य भार संतुलित होगा, बल्कि टीम भावना और शिक्षण की गुणवत्ता में भी आश्चर्यजनक सुधार देखने को मिलेगा।

शिक्षक संघ से विनम्र अपील
1. इस प्रस्ताव का विरोध करने से पहले ज़रा विचार करें, क्या यह बदलाव शिक्षा की मूल भावना, गुणवत्ता और समानता को मज़बूत नहीं करेगा?

2. क्या यह परिवर्तन वास्तव में बच्चों और शिक्षकों के हित में नहीं है?

3. हमारा उद्देश्य होना चाहिए “हर बच्चे को बेहतर स्कूल मिले, हर शिक्षक को गरिमा और सुविधा मिले।” अगर हम इस सोच के साथ आगे बढ़ें, तो न सिर्फ वर्तमान पीढ़ी, बल्कि आने वाली पीढ़ियाँ भी हमें सराहेंगी।

लेखक 
डॉ. अनिल नौसरान
"नेशनल यूनाइटेड फ्रंट ऑफ डॉक्टर्स" के संस्थापक 

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