अर्जुन देशवाल
नित्य संदेश, बहसूमा। मेरठ-पौड़ी मार्ग पर महाभारतकालीन नगरी हस्तिनापुर से 12 किलोमीटर दूर सैफपुर- फिरोजपुर में ऐतिहासिक शिव मंदिर है।कहां जाता है कि महर्षि दुर्वासा ने यहां शिवलिंग स्थापित किया था।इस मंदिर पर तमाम कोशिशों के बावजूद आज तक छत नहीं डल पाई। यहां भगवान इंद्र स्वयं भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं।
कहां जाता है कि यहां भोले बाबा से मांगी मन्नत अवश्य पूरी होती है। क्षेत्र के बुजुर्ग बताते हैं कि अंग्रेजी शासनकाल में कुछ ग्वाले मंदिर क्षेत्र में गाय चराने जाते थे। रोजाना एक गाय झुंड से निकलकर झाड़ियों में जाती थी। एक दिन ग्वालों ने गाय का पीछा किया तो देखा कि गाय के थन से दूध निकलकर शिवलिंग पर गिर रहा है। इसकी जानकारी जब जमींदार हैदर अली को हुई तो उन्होंने मजदूरों से उस स्थान की खुदाई कराई। मजदूर शिवलिंग के किनारे जमीन खोलते गए और शिवलिंग और गहरा होता चला गया।यह बात पूरे क्षेत्र में फैला गई और लोगों की आस्था बढ़ती गई। यह भी का जाता है कि महाभारत के युद्ध के दौरान पांडवों की माता कुंती और कौरवों की माता गांधारी अपने - अपने पुत्रों की जीत की कामना के लिए इस मंदिर में पूजा अर्चना करने आई थी।
मंदिर से कुछ दूरी पर एक प्राचीन तालाब है।एक दिन महर्षि दुर्वासा अपने कमंडल में तालाब से जल भरने लगे तो कई बार डुबाने के बाद भी उनका कमंडल पूरा नहीं भर पाया।इस पर महर्षि क्रोधित हो गए और तालाब को श्राप दिया कि वह कभी पूरा नहीं भरेगा।युग बीत गए, लेकिन तालाब पर श्राप का असर आज भी है।ढलान पर होने के बाद भी इसमें पानी न के बराबर ही रह पाता है।
साल में अधिकांश समय यह तालाब सूखा ही रहता है। मंदिर के पुजारी बताते हैं कि कई बार इस मंदिर पर छत डालने का प्रयास किया गया, लेकिन कभी भी लिंटर टिका नहीं। मंदिर में विराजमान शिवलिंग पर जलाभिषेक स्वयं भगवान इंद्र करते हैं। बारिश सीधे शिवलिंग पर ही गिरती है।
No comments:
Post a Comment