उर्दू विभाग में "समकालीन गैर मुस्लिम कथा साहित्यकार समागम" में ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन
नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। करीब सौ साल पहले प्रेमचंद ने कहा था कि हमें सौंदर्य के मानक बदलने होंगे। आज का कथा साहित्य हमारे समय की तमाम समस्याओं से जुड़ा हुआ है। चारों कथाओं में पीढ़ी का अंतर था। कथा साहित्य में समाज के संकट को बहुत ही अच्छे तरीके से प्रस्तुत किया गया है। कथाकार को अपनी बात खुलकर रखने की आजादी है। ये शब्द थे प्रसिद्ध शोधकर्ता एवं आलोचक डॉ. तकी आबिदी के, जो आयुसा एवं उर्दू विभाग द्वारा आयोजित "समकालीन गैर मुस्लिम कथा साहित्यकार समागम" में अपना अध्यक्षीय भाषण दे रहे थे। उन्होंने आगे कहा कि उर्दू कथा साहित्य किसी विदेशी भाषा के कथा साहित्य से कमतर नहीं है। हमारा अफ़साना हमारी मिट्टी से जुड़ा है।
कार्यक्रम की शुरुआत सईद अहमद सहारनपुरी ने पवित्र कुरान की तिलावत से हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शोधकर्ता व आलोचक डॉ. तकी आबिदी [कनाडा] ने की। प्रख्यात कथाकार दीपक बुदकी ने मुख्य अतिथि तथा मिल्कित सिंह मछाना, पंजाब, राजीव प्रकाश साहिर, लखनऊ और अविनाश अमन, पटना ने ऑनलाइन कथाकारों के रूप में भाग लिया। आयुसा की अध्यक्ष प्रोफेसर रेशमा परवीन लखनऊ से वक्ता के रूप में मौजूद रहीं। स्वागत भाषण डॉ. इरशाद स्यानवी ने, संचालन नुजहत अख्तर ने तथा धन्यवाद ज्ञापन फरहत अख्तर ने किया।
इस अवसर पर प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी ने कहा कि कहानी की शुरुआत गैर मुस्लिम लेखक प्रेमचंद से हुई। वर्तमान दौर में भी रेणु बहल, आशा प्रभात, अविनाश अमन, दीपक बुदकी, मिल्कित सिंह मछाना, राजीव प्रकाश साहिर आदि कहानी के धागों को संवार रहे हैं। जोगिंदर पाल ने कहानियां, उपन्यास और लघुकथाएं भी लिखीं। हम कह सकते हैं कि गैर-मुस्लिम कहानीकारों ने उर्दू में कहानी लिखने में उतना ही काम किया है, जितना मुस्लिम कहानीकारों ने। इस अवसर पर राजीव प्रकाश साहिर ने 'बंजारे', दीपक बुदकी ने 'छोटी-छोटी बात', मलकीत सिंह मछाना ने 'छोड़ूं कछुआं' और अविनाश अमन ने 'बिखरी आशियाना' शीर्षक से अपनी कहानियां सुनाईं। प्रख्यात लघुकथाकार दीपक बुदकी ने कहा कि आज के महत्वपूर्ण कार्यक्रम, समकालीन उर्दू के गैर-मुस्लिम कथा साहित्यकार समागम में शामिल कहानीकारों की बड़ी खूबी यह रही कि इसमें प्रस्तुत सभी कहानियां साझी सभ्यता का पाठ पढ़ाती हैं और समाज की जटिल समस्याओं जैसे बेरोजगारी, घरों का उजड़ना, काम का पूरा वेतन न मिलना आदि को कहानियों में प्रस्तुत किया गया है। इस तरह की गोष्ठियां समाज और समाज की समस्याओं को प्रतिबिंबित करने का काम करती हैं।
प्रोफेसर रेशमा परवीन ने कहा कि आज का विषय बहुत महत्वपूर्ण है। इस विषय पर मेरा ज्ञान बहुत बढ़ गया है। उन्होंने कहा कि जिस तरह कविता में मुसलमान और गैर-मुस्लिम योगदान देते हैं, उसी तरह कथा लेखन में मुसलमानों के साथ-साथ गैर-मुस्लिम कथा साहित्यकार समागम ने भी इस विधा को गरिमा प्रदान की है। कथा साहित्य कई स्तरों से गुजरा है। आधुनिक युग में जो कहानी कहीं खो गई थी, वह आज के कथा साहित्य में पूरी शिद्दत के साथ वापसी कर रही है। कथा लेखक आज की समस्याओं को बहुत ही सुंदर तरीके से प्रस्तुत कर रहे हैं। कार्यक्रम से डॉ आसिफ अली, मुहम्मद शमशाद और छात्र जुड़े रहे।
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