नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। शनिवार को हुई कथा में प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी ने अभयविद्या बताई। प्राण जिन तत्त्वों से बना है, जब वो तत्त्व किसी से न डरते, न डराते तो प्राणों को भय नहीं होता।
कृष्ण की कथा सुनाते हुए त्रिपाठी जी ने बताया कि कृष्ण ने सभी स्थानों पर विजय प्राप्त की, किन्तु उस पर स्वयं शासन न करके वहाँ के उत्तराधिकारी को राजा बनाया। यह है ऋषि धर्म - तटस्थ रहना, अधिकार न करना। कृष्णपुत्र प्रद्युम्न और मायावती की कथा, सत्राजित् - प्रसेनजित् - स्यमन्तक मणि की कथा, भौमासुर (नरकासुर) और सोलह हजार बन्दी राजकुमारियों और उनसे कृष्ण के विवाह की कथा हुई।
त्रिपाठी जी ने बताया कि सुदामा एक ऋषि थे। सुदामा अर्थात् सुन्दर डोरी वाले, सुन्दर दमन, नियन्त्रण वाले, सुन्दर साधना वाले। सुदामा की कथा में श्रीकृष्ण के मित्ररूप का सुन्दर चित्रण किया गया।
श्रीकृष्ण के लिये राजा जनक और मैथिल निर्धन ब्राह्मण श्रुतिदेव दोनों समान थे। समभाव है - ऋषित्व है। साम्ब और यदुकुलशाप की कथा हुई। वेदों द्वारा श्रीकृष्ण की सुन्दर स्तुतियों का वर्णन हुआ। रविवार की कथा में यदु और अवधूत सम्वाद, खट्वाङ्गमुनि का भिक्षुगीत, ऐल पुरुरवा कथा और भूमि की हासकथा होगी।
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