नित्य संदेश ब्यूरो
स्योहारा। स्योहारा नगर पालिका द्वारा किए जा रहे "विकास" के दावों की हकीकत ज़मीन पर कुछ और ही तस्वीर दिखा रही है। नगर में बुनियादी सुविधाओं का हाल बेहाल है — नाले गंदगी से भरे हैं, सरकारी हैंडपंप सूख चुके हैं और लोगों के लिए लगाए गए प्याऊ वर्षों से बंद पड़े हैं। हालात इतने बदतर हैं कि अब यदि कोई पत्रकार इन मुद्दों को उठाए, तो उसे चुप कराने की कोशिश की जाती है।
नगर में स्थिति यह है कि HDFC बैंक और पंजाब नेशनल बैंक शाखा के सामने लगे सरकारी हैंडपंप पूरी तरह सूखे पड़े हैं और शोपीस मात्र बनकर रह गए हैं। वहीं वार्ड नंबर 5 में नाले की सफाई के नाम पर महज़ औपचारिकता निभाई गई है। नाला अभी भी गंदगी से अटा पड़ा है जिससे संक्रमण और महामारी का खतरा बढ़ता जा रहा है। स्थानीय नागरिकों ने बार-बार सफाई की मांग की, लेकिन समाधान नहीं मिला।
नगर में कई स्थानों पर पीने के पानी के लिए लगाए गए प्याऊ भी निष्क्रिय हैं। पंजाब नेशनल बैंक शाखा के पास स्थित प्याऊ महीनों से बंद पड़ा है। शिवाजी मार्केट के व्यापारियों ने बताया कि लक्ष्मीनारायण मंदिर के पास का प्याऊ लगभग दो वर्षों से खराब है। स्थानीय नागरिकों ने मजबूर होकर मंदिर के समरसेबल से पाइप जोड़कर प्याऊ को चालू रखने का प्रयास किया है। इसी प्रकार वार्ड नंबर 10 में भी मंदिर के पास लगा प्याऊ लंबे समय से पानी नहीं दे रहा है।
इतना ही नहीं, जब स्थानीय पत्रकारों ने इन मुद्दों को नगर पालिका के व्हाट्सएप ग्रुप में उठाया तो उन्हें चुप कराने की कोशिश की गई। शनिवार को नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी विजेंद्र सिंह द्वारा संचालित समूह में जब एक पत्रकार ने स्योहारा की गंदगी और सफाई व्यवस्था पर सवाल उठाया, तो ईओ ने पत्रकार को ग्रुप से ही हटा दिया। यह कृत्य न केवल असहिष्णुता को दर्शाता है, बल्कि लोकतांत्रिक संवाद और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
नगर पालिका अध्यक्ष से जब इस संबंध में संपर्क करने की कोशिश की गई, तो उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया। यह रवैया उस जनता के प्रति निराशाजनक है, जिसने उन्हें प्रतिनिधित्व के लिए चुना है।
हालांकि जब अधिशासी अधिकारी विजेंद्र सिंह से बंद प्याऊ और सूखे हैंडपंप को लेकर प्रतिक्रिया मांगी गई, तो उन्होंने कहा कि “जो प्याऊ बंद हैं, उन्हें जल्द ही ठीक कराया जाएगा और जिन हैंडपंपों में पानी नहीं आ रहा, उनकी सूची बन रही है। उनका एस्टीमेट तैयार कर नए हैंडपंप लगाए जाएंगे।”
लेकिन सवाल यह है कि जब समस्याएं वर्षों से मौजूद हैं, तो कार्रवाई अब तक क्यों नहीं हुई? और अगर कोई पत्रकार इन मुद्दों की तरफ ध्यान दिलाता है, तो क्या उसका जवाब निकालना होगा या समस्या का समाधान करना?
नगर में नागरिक सुविधाओं की यह स्थिति दर्शाती है कि “स्मार्ट सिटी” के दावों के पीछे हकीकत कितनी खोखली है। जब बुनियादी चीज़ें — पानी, सफाई और संवाद — ही सही नहीं हैं, तो स्मार्ट विकास की बातें महज़ छलावा बनकर रह जाती हैं।
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