अंकित जैन
नित्य संदेश, मुजफ्फरनगर। सिरदर्द एक आम समस्या है, लेकिन हर सिरदर्द एक जैसा नहीं होता। कुछ लोगों को हल्का सिरदर्द कभी-कभी होता है, जबकि कई लोग ऐसे भी हैं जिन्हें बार-बार तेज़ दर्द होता है, जो रोज़मर्रा की ज़िंदगी को बुरी तरह से प्रभावित करता है। भारत जैसे देश में, जहां काम का तनाव, लंबी ट्रैफिक की लाइनें और गर्म मौसम आम बात है, सिरदर्द की शिकायतें और भी बढ़ जाती हैं। ऐसे में ये जानना बेहद ज़रूरी है कि आपका सिरदर्द क्रॉनिक हेडेक है या माइग्रेन – क्योंकि दोनों का इलाज अलग होता है। क्रॉनिक हेडेक यानी ऐसा सिरदर्द जो हर महीने कम से कम 15 दिन बना रहे और ये तीन महीने तक चले। ऐसा दर्द अक्सर माथे या सिर के चारों ओर दबाव जैसा महसूस होता है, जैसे किसी ने कस कर पट्टी बांध दी हो। इसके पीछे कई वजहें हो सकती हैं – जैसे स्ट्रेस, गलत बैठने का तरीका, पानी कम पीना, नींद पूरी न होना या भूखा रहना। ऐसे सिरदर्द से व्यक्ति काम तो कर पाता है लेकिन थकान, चिड़चिड़ापन और ध्यान की कमी बनी रहती है।
डॉ. चिराग गुप्ता, जो यथार्थ अस्पताल ग्रेटर नोएडा में न्यूरोलॉजी विभाग में सीनियर कंसल्टेंट हैं बताते हैं, माइग्रेन एक अलग और ज़्यादा तेज़ किस्म का सिरदर्द होता है। ये दर्द अक्सर सिर के एक तरफ धड़कता हुआ महसूस होता है और 4 घंटे से लेकर 3 दिन तक रह सकता है। माइग्रेन के साथ कई बार उल्टी और तेज़ रोशनी और आवाज़ से परेशानी जैसी दिक्कतें भी होती हैं। कुछ लोगों को माइग्रेन शुरू होने से पहले 'वॉर्निंग साइन' भी मिलते हैं – जैसे आंखों के सामने चमकती रोशनी, धुंधलापन या हाथ-पैरों में झनझनाहट। भारत में हर सातवां व्यक्ति माइग्रेन से जूझ रहा है, लेकिन बहुत से लोग इसे गंभीर बीमारी नहीं मानते और सिर्फ दर्द की गोली खाकर बात टाल देते हैं। "माइग्रेन और क्रॉनिक हेडेक में फर्क समझना ज़रूरी है क्योंकि सही इलाज तभी मुमकिन है जब सही कारण पता हो। बहुत बार मरीज़ सालों तक खुद ही घरेलू नुस्खों या ओवर-द-काउंटर दवाओं से काम चलाते रहते हैं, जिससे समस्या और बढ़ जाती है।"भारत में आज भी सिरदर्द को हल्के में लिया जाता है। लोग तब तक डॉक्टर के पास नहीं जाते जब तक दर्द बहुत ज़्यादा ना बढ़ जाए या रोज़ के कामों में रुकावट ना आने लगे। जबकि अगर सिरदर्द बार-बार हो रहा हो या किसी खास ट्रिगर – जैसे कुछ खाने के बाद, मौसम बदलने पर, या तनाव के बाद – शुरू हो रहा हो, तो न्यूरोलॉजिस्ट से सलाह लेना जरूरी है। कई बार ये सिरदर्द किसी और बड़ी बीमारी का भी संकेत हो सकता है।
इलाज सिरदर्द के प्रकार पर निर्भर करता है। क्रॉनिक हेडेक के लिए जीवनशैली में थोड़े बदलाव – जैसे नींद पूरी लेना, पानी ज़्यादा पीना, स्क्रीन टाइम कम करना और तनाव कम करना – काफी असरदार हो सकते हैं। माइग्रेन के इलाज में दवाएं दी जाती हैं जो या तो दर्द को रोकती हैं या भविष्य के अटैक से बचाती हैं। अब भारत के कई शहरों में बोटॉक्स इंजेक्शन और नर्व स्टिमुलेशन जैसी नई तकनीकें भी उपलब्ध हैं, जो उन मरीज़ों के लिए फायदेमंद हैं जिन्हें सामान्य दवाओं से राहत नहीं मिलती।
सिरदर्द को नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है। सही समय पर पहचान और इलाज से आप ना सिर्फ दर्द से राहत पा सकते हैं, बल्कि अपनी ज़िंदगी की क्वालिटी भी बेहतर बना सकते हैं। चाहे माइग्रेन हो या क्रॉनिक हेडेक, सही जानकारी और डॉक्टर की मदद से दर्द से छुटकारा पाया जा सकता है – और एक बार फिर बिना सिरदर्द के ज़िंदगी को पूरी तरह जिया जा सकता है।
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