उर्दू
विभाग में अदबनुमा के तहत “उर्दू लोकगीत: महत्व और उपयोगिता” पर
ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित किया गया
नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। हमारे धार्मिक
अनुष्ठानों में लोकगीत भी शामिल हैं। लोकगीत, विशेषकर उर्दू में, कलात्मक
ढंग से प्रस्तुत किये जाते हैं। हम जिन क्षेत्रों में रहते हैं, वहां
के वातावरण और गतिविधियों को फिल्म उद्योग में चित्रित किया जा रहा है। शकील
बदायूंनी, साहिर
और आनंद बख्शी सहित अन्य ने फिल्मों में लोकगीतों को कलात्मक रूप से प्रस्तुत
किया। ये शब्द थे अलीगढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालय के उर्दू विभाग के पूर्व अध्यक्ष
प्रोफेसर सगीर अफ्राहीम के, जो उर्दू विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय एवं
अंतर्राष्ट्रीय यंग उर्दू स्कालर्स ऐसोसिएशन (IYUSA) द्वारा आयोजित “उर्दू
लोकगीत: महत्व और उपयोगिता” विषय पर अपना अध्यक्षीय भाषण दे रहे थे।
कार्यक्रम
की शुरुआत डॉ. नवेद खान ने पवित्र कुरान की तिलावत से की। अध्यक्षता प्रो.
सगीर अफ्राहीम पूर्व उर्दू विभागाध्यक्ष, एएमयू अलीगढ़ की रही। प्रो. आबिद
हुसैन हैदरी [एम.जी.एम.जी.जी. कॉलेज, संभल], डॉ.
अब्दुल्ला इम्तियाज [उर्दू विभागाध्यक्ष, मुंबई] और सहारा ग्रुप के वरिष्ठ
पत्रकार लईक रिजवी ने अतिथि के आयुसा की अध्यक्ष प्रोफेसर रेशमा परवीन ने वक्ता के शोध
पत्र प्रस्तुतकर्ता के रूप में डॉ. शादाब अलीम [उर्दू विभाग, चौधरी
चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ] ने भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन उर्दू विभाग की
रिसर्च स्कॉलर उज़मा सहर ने तथा धन्यवाद ज्ञापन शहनाज़ परवीन ने किया।
प्रोफेसर
असलम जमशेदपुरी ने कहा कि लोक साहित्य और उर्दू लोकगीतों के संबंध में हमें यह जान
लेना चाहिए कि लोक साहित्य लिखने वाला कोई एक लेखक नहीं होता। इन लोकगीतों में
विभिन्न रीति-रिवाज और परंपराएं समाहित हैं और इन्हें लोगों द्वारा ही रचा गया है।
लोकगीत और लोकसाहित्य जनता के हैं। कार्यक्रम से सईद अहमद सहारनपुरी, मुहम्मद
शमशाद, मुहम्मद
नदीम, छात्र
एवं अन्य गणमान्य लोग ऑनलाइन जुड़े।
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