डॉक्टर अभिषेक डबास
नित्य संदेश, मेरठ। स्कूल ऑफ लॉ एंड कॉन्स्टिट्यूशनल स्टडीज (एसएलसीएस) के छात्रों ने न्याय की परिवर्तनकारी शक्ति में अपने विश्वास में एकजुट होकर, उत्साही समर्पण के साथ विधिक सहायता दिवस मनाया।
निदेशक, एसएलसीएस प्रमोद कुमार गोयल ने एक प्रभावशाली संबोधन दिया, जिसमें ऐसी दुनिया में कानूनी सहायता की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया गया जहां गरीबी, जागरूकता की कमी और सामाजिक असमानता जैसी बाधाएं अभी भी न्याय के मार्ग में बाधा डालती हैं। उन्होंने कहा, कानूनी सहायता, सहायता से कहीं अधिक है - यह एक जीवन रेखा है, एक सेतु है जो विपन्न अथवा अभाव पूर्ण अथवा सीमित संसाधनों वाले व्यक्तियों को उनके मौलिक अधिकारों तक पहुंचने की अनुमति देता है। इसके बिना, बहुत सारी आवाज़ें खामोश रह जाती हैं, अन्याय की बहुत सी कहानियाँ अनकही रह जाती हैं।
इसके मूल में, कानूनी सहायता का उद्देश्य समानता और न्याय के संवैधानिक वादे को कायम रखना है, जबकि इसका वास्तविक परिणाम व्यक्तियों को अपने अधिकारों की रक्षा करने, अपनी आवाज उठाने और एक निष्पक्ष, अधिक न्यायपूर्ण समाज में योगदान करने के लिए सशक्त बनाना है। इस आयोजन ने न केवल कानूनी सहायता के गहन महत्व पर प्रकाश डाला, बल्कि इस मशाल को आगे बढ़ाने वाले कानूनी दिमागों को बढ़ावा देने के लिए एसएलसीएस की प्रतिबद्धता की भी पुष्टि की।
जोशीले विचार-विमर्श के माध्यम से उन्होंने अनुच्छेद 39ए के संवैधानिक आदेश को गहराई से समझा, जो राज्य से यह सुनिश्चित करने का निर्देश देता है कि कोई भी नागरिक वित्तीय या सामाजिक बाधाओं के कारण विधिक सहायता से वंचित न रहे। यह महत्वपूर्ण प्रावधान उन लोगों को सहायता प्रदान करने की हमारे सामूहिक उत्तरदायित्व को रेखांकित करता है जो सक्षम विधिक सेवा के अभाव मे हाशिए पर रखे जा सकते हैं।
समापन से पूर्व प्रथम वर्ष की छात्रा सुश्री नील ने आह्वान किया कि हम सभी के लिए न्याय सुनिश्चित करने के लिए समर्पित भाव से एक ऐसे देश का निर्माण करें, जहां प्रत्येक भारतीय नागरिक को यह विश्वास हो कि उनके अधिकार सुरक्षित हैं।
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