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Saturday, August 31, 2024

विश्व पटल पर शांति दूत भारत

प्रभात कुमार रॉय
नित्य संदेश डेस्क। सदियों से भारत वसुधैव कुटुंबकम की कालजयी उद्घोषणा के साथ विश्व पटल पर एक शांति दूत राष्ट्र के रूप में जाना पहचाना जाता रहा है। भारत की पुण्य धरा पर ऋषि मुनियों की प्रबल सांस्कृतिक परंपरा में भगवान बुद्ध और महात्मा गांधी सरीखे सत्य और अहिंसा के युग प्रवर्तक पैरोकारों का उदय हुआ। 

तीसरा विश्व युद्ध के विनाशकारी कगार पर खड़ी हुई दुनिया के लिए भारत फिर से विश्व पटल पर शांति दूत बनकर उभरा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूक्रेन यात्रा को भारतीय संस्कृति की इसी शानदार परंपरा के संदर्भ में समझा और देखा जाना चाहिए। अपनी मास्को यात्रा के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने प्रखर शब्दों में फरमाया था कि विनाशकारी युद्ध किसी भी वैश्विक समस्या का समाधान नहीं कर सकता है। दुनिया की जटिल समस्याओं को कूटनीतिक तौर पर बातचीत द्वारा सुलझाया जाना चाहिए। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ जब कभी नरेंद्र मोदी की बातचीत हुई है, भारत के इसी कूटनीतिक नजरिए को उनके सामने पेश किया गया है। अपनी मास्को यात्रा के 6 हफ्ते बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूक्रेन की राजधानी कीव की यात्रा अंजाम दी और यूक्रेन के प्रेसिडेंट वलोदिमीर जेलेंस्की के साथ 23 अगस्त को एक शानदार कूटनीतिक मुलाकात की। दोनों लीडरान ने पहले हाथ मिलाया फिर मोदी ने जेलेंस्की को आगे बढ़कर गले लगाया। उल्लेखनीय कि जब नरेंद्र मोदी द्वारा जुलाई 8 और 9 तारीख को मास्को की यात्रा की गई थी और राष्ट्रपति पुतिन को अपने गले से लगा लिया था। नरेंद्र मोदी के इस सरल शालीन व्यवहार पर निशाना लगते हुए राष्ट्रपति जेलेंस्की ने बहुत कड़वी टिप्पणी नरेंद्र मोदी की आलोचना करते हुए अंजाम दी थी। जेलंस्की ने कहा था कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता को मास्को में दुनिया के सबसे बड़े खूंखार अपराधी को गले लगाते हुए देखकर मैं बहुत निराश हूं। कूटनीतिक ज्ञान के अनेक जानकारों द्वारा इस यात्रा को रूस-यूक्रेन युद्ध के दौर में मास्को और नाटो सैन्य शक्ति के मध्य एक भारत द्वारा कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने की कवायद करार दिया गया। 

उल्लेखनीय है कि भारतीय कूटनीति ने रूस-यूक्रेन युद्ध में अपनी कूटनीतिक स्थिति को किसी भी एक युद्धरत पक्ष की हिमायत करने से दूर रखा है। रूस की भर्त्सना और आलोचना करने वाले सभी प्रस्तावों से जोकि संयुक्त राष्ट्र में पेश किए गए, भारत द्वारा उनका कदाचित समर्थन नहीं किया गया। भारत ने रूस के विरुद्ध पश्चिम के प्रस्तावों का संयुक्त राष्ट्र में बहिष्कार करके अपने कूटनीतिक स्थिति को स्पष्ट बनाए रखा है। अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देशों द्वारा रूस के विरुद्ध आयद किए गए सभी आर्थिक प्रतिबंधों को भारत द्वारा कदाचित स्वीकार नहीं किया गया। रुस से विशेषकर के तेल के आयात और रक्षा सामग्री की खरीदारी पर आयद प्रतिबंधों को भारत द्वारा कदापि स्वीकार नहीं किया गया। भारत द्वारा रूस से आयात किए जाने वाले तेल की मात्रा को तीन गुना कर दिया गया है। विगत वर्ष हुए जी-20 राष्ट्रों के सालाना सम्मेलन में जिस की अध्यक्षता भारत कर रहा था, राष्ट्रपति जैलेंसकी ने यूक्रेन के सवाल को जी-20 सम्मेलन के वार्ता पटल पर शामिल करने के लिए भारत से गुजारिश की। राष्ट्रपति जैलेंसकी की इस गुजारिश को भारत द्वारा बाकायदा अस्वीकार कर दिया गया था। 

सन् 1991 में सोवियत संघ के विघटन के पश्चात जब से यूक्रेन एक राष्ट्र के तौर पर पूर्वी यूरोप में स्थापित हुआ है, तब से पहली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा यूक्रेन की यात्रा अंजाम दी गई है। राष्ट्रपति जेलेंस्की की और प्रधानमंत्री मोदी के मध्य रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रश्न पर एक लंबी बातचीत की गई। वार्ता के दौरान नरेंद्र मोदी ने कहा कि मैं आपको यकीन दिलाता हूं कि भारत शांति की दिशा में किसी भी कोशिश में सक्रिय भूमिका अदा करने के लिए तत्पर है। अगर मैं व्यक्तिगत रूप से इसमें कोई भूमिका का निर्वाह कर सकता हूं, तो मैं ऐसा अवश्य ही करूंगा। बातचीत के दौरान नरेंद्र मोदी ने यह भी कहा कि भारत इस युद्ध के दौर में कभी निष्क्रिय नहीं रहा वह सदैव शांति के पक्ष में खड़ा रहा है। 

पश्चिमी राष्ट्रों केअनेक लीडरों द्वारा यूक्रेन की यात्रा सन् 2022 से की लगातार की गई है । इन सभी यात्राओं से अलग हटकर नरेंद्र मोदी ने युद्ध में घायल हुए यूक्रेन सैनिकों और नागरिकों के साथ कोई मुलाकात नहीं की। नरेंद्र मोदी ने रूस-यूक्रेन युद्ध में मारे गए बच्चों की स्मृति में निर्मित की गए एक मेमोरियल प्रदर्शनी का दर्शन किया। यूक्रेन और भारत के मध्य चार विशिष्ट समझौते अंजाम दिए गए। अंजाम दिए गए इन समझौतों में कृषि क्षेत्र, सांस्कृतिक सहयोग, दवाइयां के उत्पादन और सामाजिक और आर्थिक विकास के प्रोजेक्ट्स शामिल हैं। 

नरेंद्र मोदी की यूक्रेन यात्रा के तत्पश्चात राष्ट्रपति जेलेंस्की दफ्तर के प्रवक्ता द्वारा यह कहा गया कि मोदी की यूक्रेन यात्रा एक ऐतिहासिक यात्रा साबित हुई है और यूक्रेन यह उम्मीद करता है कि भारत रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने में एक बड़ी भूमिका का निर्वाह कर सकता है। भारत के विश्वसनीय कूटनीतिक सूत्रों के अनुसार यदि यूक्रेन और रूस दोनों चाहेंगे तो भारत इस भीषण युद्ध को समाप्त कराने के लिए मध्यस्थता कर सकता है। भारत इस युद्ध में इसलिए भी मध्यस्थता के लिए इच्छुक है क्योंकि वह नहीं चाहता कि रूस के नेतृत्व में एक नया शक्ति गुट निर्मित हो जाए और विश्व पटल पर एक नया शीत युद्ध शुरू हो जाए। भारत कदापि नहीं चाहता कि रूस वस्तुत पश्चिम से बहुत अधिक दूर होकर चीन के अत्यंत निकट चलाया जाए जोकि अपनी विस्तारवादी नीति के कारण भारत के प्रति शत्रुता का भाव रखता है। 

रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए अभी तक पश्चिम के देशों ने खासतौर से यूरोप के देशों ने चीन की ओर बड़ी उम्मीद से अपनी दृष्टि लगाए रखी, किंतु चीन द्वारा रूस के साथ स्थापित हुए निकट सैन्य सहयोग के कारण अभी यह उम्मीद तकरीबन टूटती जा रही हैं। रूस -यूक्रेन युद्ध में भारत यदि मध्यस्था की पहल करता है तो यूरोप निश्चित रूप से भारत का साथ देगा ।क्योंकि रूस-यूक्रेन युद्ध के दौर में सबसे अधिक हालात यूरोप की खराब हुए हैं। यूरोप में महंगाई की दर आसमान पर है। रूस द्वारा तेल और गैस की सप्लाई को रोक देने के कारण यूरोप में गंभीर ऊर्जा संकट उत्पन्न हो गया है। 

नरेंद्र मोदी द्वारा यूक्रेन की यात्रा के कारण दिल्ली और कीव के मध्य कूटनीतिक रिश्तों की नई इबारत लिखी गई है। भारत के लिए यूरोप का कूटनीतिक मार्ग अधिक सुगम हो गया है। सर्व विदित है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के दौर में तबाह और बर्बाद होता हुआ यूरोप अब वास्तव में शांति चाहता है। युद्ध में भारत की कूटनीतिक तटस्थता और रूस के साथ भारत की पारंपरिक निकटता के कारण यूरोप समझता है कि भारत युद्ध को समाप्त करने में यकीनन बड़ी भूमिका का निर्वाह अंजाम दे सकता है। 

यूरोप विगत दो वर्षों के दौरान यह बखूबी देख चुका है कि चीन की यूक्रेन रूस युद्ध को समाप्त करने में कोई गंभीर रुचि नहीं है। वरन् चीन इस युद्ध का सामरिक लाभ लेकर रूस के और अधिक निकट जाने की कोशिश कर रहा है। भारत के हित में है कि यूक्रेन और रूस की दोस्ती को एक साथ बरकरार बनाए रख सके। अतः भारत किसी एक देश का पक्ष कदापि नहीं लेगा और अपनी संतुलित कूटनीति के तहत का अपनी विदेश नीति को अंजाम देगा। 

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