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Tuesday, December 9, 2025

एक अविस्मरणीय राजसी विवाह जिसमें अनुपम सादगी

सपना सीपी साहू 
नित्य संदेश, इंदौर। कुछ विवाह सिर्फ दो जन के जुड़ाव और उनकी आत्माओं का मिलन ही नहीं होते, अपितु वे हमारी सांस्कृतिक विरासत और शाश्वत मूल्यों का अनुपम दर्शन होते हैं। सुप्रसिद्ध कथावाचक इंद्रेश महाराज (इंद्रेश उपाध्याय जी) और हरियाणा की सौभाग्यकांक्षिणी शिप्रा शर्मा जी का विवाह ऐसा ही विलक्षण अध्याय है। यह भव्य राजसी विवाह और उसमें सादगी से भरे वर, वधु के रूप हमें स्वतः समझा रहे थे कि वास्तविक भव्यता आभूषणों और ठाठ-बाठ से अधिक मन की पवित्रता और संस्कारों के निर्वाह में बसती है। 

वर बने इंद्रेश उपाध्याय जी की आभूषणों में लिपटी सादगी, उत्तर भारत का मस्तक पर तिलक श्रंगार आज के आधुनिकता की दौड़ में दौड़ते दूल्हों से बहुत अधिक सुंदर लग रहा था। जहां आज के समय में आधुनिक दूल्हा-दुल्हन अपनी जड़ों को भूलते जा रहे हैं, वहीं इंद्रेश महाराज का रूप, मन को बरबस खींच रहा था। उनका पहनावा बिल्कुल पारंपरिक था। जिसने भी वायरल वीडियों में पारंपरिक सादगी से उनको वर बने देखा सबका हृदय मोहित कर गया। 
उत्तरप्रदेश में पुराने समय में जैसे भौंहो से ऊपर ललाट पर सजी बिंदी वर-वधू दोनों को लगाई जाती थी, वह बहुत समय बाद देखने को मिली। यह मस्तक से आंखो के नीचे तक सजी पारंपरिक भारतीय बिंदी, पुरुष सौंदर्य का पुनः दुर्लभ चित्र प्रस्तुत कर रही थी। यह दर्शाता है कि सच्चा पुरुषार्थ, आधुनिक दिखावे में नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति के प्रति गहरे सम्मान और विनम्रता में निहित है। उनका यह रूप जैसे संदेश दे रहा था कि परंपराएं हास-परिहास या बोझ नहीं, बल्कि हमारा गौरव हैं।

वही उनकी वधु शिप्रा जी को भी जिसने देखा वह उनकी सौम्य, अति सुंदर छवि, ऊपर से उनकी लाज, शरम से मंत्रमुग्ध हो गया। उनका श्रंगार, घुंघट में फेरे लेना आज के बिंदास दौर में अलग लगा। 

जब दुल्हनें पार्लर में ब्लाऊज और जिंस में श्रंगार करवाती वायरल हो रही है या स्टेज पर मार्डन तरीके से नाचती, धूम मचाती या अन्य ड्रामे करती दिख रही हैं, तो ऐसे समय में शिप्रा शर्मा जी ने मानो बरसों पहले खो चुकी भारतीय दुल्हन की छवि को पुनः स्थापित कर दिया है। उनका हर भाव, हर मुद्रा...झुके-झुके से नैन श्रद्धा और समर्पण की कहानी कह रहे थे। उनकी शर्मीली सी मुस्कान, किसी भी आधुनिकता से अधिक मनमोहक, आकर्षक लग रही थी।

जब वे हाथ जोड़, शीश नवा कर सबको सम्मान दे रही थी तो सबको बहुत अच्छा लग रहा था क्योंकि आज जब यह दृश्य आम हो चुका है कि मेहमानों को बुलाकर दुल्हा-दुल्हन सही समय पर स्टेज पर ही नहीं पहुंचते और मेहमान भी भोजन करकर, परिवार के अन्य सदस्यों को भेंट देकर, केवल महंगे सेट-अप देखकर लौट जाते है, तो ऐसे समय में वह हर अतिथि के लिए सरलता किंतु आत्मविश्वास से अभिवादन कर रही थी। जो उनके संस्कारों की गहराई और आत्म-नियंत्रण की सुंदरता दर्शा रहा था। यह दिखाता है कि भारतीय वधु का वास्तविक सौन्दर्य उसके शर्मिले मौन, सम्मान और शालीनता में निहित है।

यह विवाह रस्मों के निर्वाह में भी बहुत सुंदर रहा। यह अद्वितीय श्रद्धा और निष्ठा का संगम लग रहा था। जहां आज के समय में आधुनिक शादी, फंक्शन, महिला संगीत में फुहड़, कानफोडू गीत-संगीत बजता है। वहीं इस विवाह समारोह में भक्ति गीतों, सुमधुर विवाह गीतों पर घर की माता, बहनें व अन्य अतिथि प्रस्तुति दें रहे थे। यह विवाह का वास्तविक पवित्र अनुष्ठान लग रहा था, हर छोटी-बड़ी रस्म को भी बड़ी ही श्रद्धा, निष्ठा और मनोयोग पूर्वक निभाया जा रहा था, कहीं कोई जल्दबाजी नहीं, कोई दिखावा नहीं, बस परंपराओं को जीवंत करने की सच्ची लगन दिख रही थी।

वरमाला की रीत भी बहुत सादगी भरी थी। जहां आजकल दूल्हा-दुल्हन, एक-दूसरे को नीचा दिखाने या एक्ट करने की होड़ में होते हैं, वहां इस जोड़े ने अपनी विनम्रता से इस पूरे दृश्य को ही एक मधुर भजन बना दिया था। सच में, आगे बनने वाले दूल्हा-दुल्हन के लिए यह विवाह समारोह अमूल्य सीख देता है कि सादगी ही सर्वश्रेष्ठ आभूषण है‌।

महंगे-महंगे विदेशी परिधान और भव्य सेट-अप केवल ऊपरी पृष्ठभूमि दिखाते हैं। असली सौंदर्य, वर-वधु का विनम्र आचरण होता है। वहीं विवाह समारोह एक-दूसरे के साथ सभी अतिथियों के सम्मान और समर्पण का नाम है। सबका सम्मान सर्वोपरि होता है। भारतीय नववधु आज भी सौम्यता और सादगी में ही ज्यादा उत्कृष्ट लगती है। अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहना ही हमें आज भी वास्तविक भव्यता प्रदान करता है।

कथावाचक इंद्रेश महाराज और सौ.कां. शिप्रा शर्मा जी ने सिद्ध कर दिया कि यदि आपके चेहरे पर सादगी और आंखों में संस्कारों की चमक है, तो वह विवाह नहीं बल्कि एक तीर्थयात्रा के समान पुनीत लगता है।

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