मेरठ। अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन “फोटॉनिक्स एंड इमर्जिंग मैटेरियल्स फ़ॉर फ्यूचरिस्टिक टेक्नोलॉजी (PEMFT-2025)” के तीसरे दिन वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने नई तकनीकों, ऊर्जा समाधान, पर्यावरण, स्वास्थ्य और उन्नत उपकरणों पर अपने शोध प्रस्तुत किए।
कॉन्फ्रेंस हॉल 1 में प्रो. आर. के. सोनी (सीसीएसयू मेरठ) की अध्यक्षता में पहला सत्र हुआ। इस सत्र में ऐसी नई इलेक्ट्रॉनिक तकनीकों पर चर्चा हुई जो कम बिजली में ज्यादा काम कर सकती हैं। डॉ. अनिल कुमार चौहान (BARC मुंबई) ने बताया कि किस तरह ऑर्गेनिक इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस—जैसे ऑर्गेनिक सोलर सेल, OLED लाइट, और ग्राफीन–पॉलीमर से बने उपकरण—नई तकनीकों की मदद से पहले से 15–20% ज्यादा बेहतर काम कर रहे हैं। इसके बाद प्रो. मनीष कुमार (JNU) ने पेरोव्स्काइट सोलर सेल में हुए सुधारों के बारे में बताया, जिनसे इन सोलर सेल की मजबूती और बिजली बनाने की क्षमता दोनों बढ़ती हैं। प्रो. सुमन महेंदिया (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय) ने बताया कि बायोमास यानी जैविक कचरे से तैयार विशेष कार्बन सामग्री आने वाली पीढ़ी की बैटरियों और सुपरकैपेसिटरों के लिए बहुत उपयोगी हो सकती है। डॉ. अनुराग गौर (NSUT) ने ऐसे सुपरकैपेसिटर समझाए जो बैटरी और कैपेसिटर दोनों की खूबियों को मिलाकर बनते हैं, और बिजली को जल्दी चार्ज–डिस्चार्ज करने में सक्षम होते हैं।
कॉन्फ्रेंस हॉल 2 में प्रो. एन. वी. प्रसाद (उस्मानिया विश्वविद्यालय) की अध्यक्षता में टेराहर्ट्ज़ तकनीक और उन्नत सेंसरों पर सत्र हुआ। प्रो. दिबाकर रॉय चौधरी (अनुराग विश्वविद्यालय) ने ऐसी सामग्रियों पर चर्चा की जो बहुत ही तेज़ और छोटे आकार वाले भविष्य के इलेक्ट्रॉनिक व फोटोनिक उपकरणों में काम आएंगी। प्रो. राजन झा (IIT भुवनेश्वर) ने एक ऐसी विशेष तकनीक दिखाई जिससे किसी भी सतह की बहुत बारीकी से जाँच की जा सकती है और कंपन का असर भी नहीं पड़ता। डॉ. ज्ञानेंद्र श्योराण (NIT दिल्ली) ने शीशे या पारदर्शी सतहों की सटीक जाँच करने वाली नई विधियाँ बताईं, जो उद्योगों और लैब्स में उपयोगी हैं। डॉ. मुकेश कुमार (IIT रोपड़) ने एक खास तरह के फोटोडिटेक्टर दिखाए जो बहुत तेज़ पराबैंगनी (UVC) रोशनी को पहचान सकते हैं और सुरक्षा व स्वास्थ्य उपकरणों में बहुत उपयोगी साबित हो सकते हैं।
हॉल 3 में 'स्ट्रक्चरल प्रॉपर्टीज़ एंड एप्लिकेशन' सत्र डॉ. प्रीतम सिंह (CSIR–NPL) की अध्यक्षता में हुआ। डॉ. प्रमोद कुमार (गुरुग्राम विश्वविद्यालय) ने बताया कि किस तरह ZnO नामक पदार्थ में छोटे-छोटे दोष (defects) बनाकर उसमें चुंबकत्व पैदा किया जा सकता है, जो नई तकनीकों के लिए महत्वपूर्ण है। प्रो. चंद्रकीराम गौतम (लखनऊ विश्वविद्यालय) ने विशेष प्रकार के ग्लास और ग्लास-सिरेमिक सामग्री दिखाईं, जिनका उपयोग मेडिकल उपकरणों से लेकर उच्च-दक्षता वाले इलेक्ट्रॉनिक सामान तक, कई जगह किया जा सकता है।
पोस्टर सत्र तीसरे दिन का सबसे विविध और आकर्षक हिस्सा रहा। इसमें युवा वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने कई प्रकार के मॉडल, नए उपकरण, विचार और प्रयोग प्रस्तुत किए। इसमें नई किस्म के सोलर सेल, बेहतर फोटोडिटेक्टर, प्रकाश को नियंत्रित करने वाली तकनीकें, पर्यावरण सुधारने वाले फोटोकैटलिस्ट, ऊर्जा भंडारण की नई विधियाँ, गैस सेंसर, बायोचार और MOF जैसे पदार्थों से प्रदूषण कम करने के उपाय, और स्वास्थ्य से जुड़े नए बायोसेंसर्स शामिल थे।
तीसरे दिन के सभी सत्रों ने यह स्पष्ट किया कि नई सामग्रियों और फोटोनिक्स तकनीक का मेल आने वाले समय में ऊर्जा, पर्यावरण, स्वास्थ्य और उद्योग जगत में बड़े बदलाव ला सकता है। सम्मेलन ने युवा शोधकर्ताओं को प्रेरित किया और समाज के लिए नई वैज्ञानिक संभावनाओं के द्वार खोले।
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