नित्य संदेश। इस धरती पर जन्म लेने वाला हर बच्चा उसी ईश्वर की सृष्टि है। कोई लड़का बनकर आता है, कोई लड़की बनकर, और कुछ बच्चे ट्रांसजेंडर के रूप में जन्म लेते हैं —
लेकिन सबसे पहले वे मानव होते हैं। जन्म के समय वे भी उसी तरह रोते हैं, हँसते हैं, और सपने देखते हैं — स्वीकृति, सम्मान और प्रेम के। फिर क्यों समाज का व्यवहार अचानक बदल जाता है जब उसे पता चलता है कि कोई बच्चा ट्रांसजेंडर है? क्यों अपनापन खो जाता है और तिरस्कार शुरू हो जाता है?
सच तो यह है कि ट्रांसजेंडर बच्चे अलग पैदा नहीं होते,
हम उन्हें अलग महसूस कराते हैं। वे भी साधारण परिवारों में जन्म लेते हैं, जैसे हम सब। वही भोजन खाते हैं, वही हवा में सांस लेते हैं, और वही दिल रखते हैं जो उम्मीदों और भावनाओं से भरा होता है। उनकी "भिन्नता" केवल हमारी दृष्टि में है, उनकी वास्तविकता में नहीं। ट्रांसजेंडर किसी भी परिवार, किसी भी जाति और किसी भी धर्म में जन्म ले सकते हैं, क्योंकि प्रकृति भेदभाव नहीं करती। फिर हम, जो स्वयं को शिक्षित और सभ्य कहते हैं, क्यों उन्हें उसी प्रेम और सम्मान से नहीं स्वीकार करते? वे प्रकृति की विविधता का प्रतीक हैं, उसकी त्रुटि नहीं। उनके भीतर भी वही पंच तत्व हैं — पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश — जो हर जीव में विद्यमान हैं। प्रकृति की दृष्टि में वे उतने ही पवित्र, सच्चे और पूर्ण हैं जितने हम हैं।
अब समय आ गया है कि हम लिंग से ऊपर उठकर आत्मा को देखें। आइए, आज संकल्प लें —अब कोई ट्रांसजेंडर बच्चा अपने ही परिवार में पराया महसूस न करे, और कोई ट्रांसजेंडर व्यक्ति समाज में सम्मान से वंचित न रहे। स्वीकृति कोई उपकार नहीं है — यह मानवता है। हर व्यक्ति, चाहे उसका लिंग कोई भी हो, सम्मान, प्रेम और गरिमा के साथ जीने का अधिकार रखता है।
प्रो. (डॉ.) अनिल नौसरान
संस्थापक, साइक्लोमेड फिट इंडिया
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