नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। मयूर विहार स्थित प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी के आवास पर रविवार को भागवत की तपप्रधान पांचवे दिन की कथा हुई। प्रो. त्रिपाठी नें बताया कि तप में और व्रत में जो सबसे बड़ा भेद है, वह है कि व्रत में कोई उद्देश्य होता है और तप लम्बी योजना करके बिना उद्देश्य के किया जाता है।
आज देवकी वसुदेव की कथा, कृष्ण भगवान का जन्म, कंस का भयभीत होना व सभी छोटे बच्चों को मारने का आदेश देना। कृष्ण की तपस्या का आरम्भ, कंस और शिशुपाल भगवान के द्वारपाल थे, जो कि श्रापित थे और अपने कर्मों का फल पाने के लिए आए थे। कृष्ण का यशोदा को अपना स्वरुप दर्शन करवाना, परन्तु पुत्र मोह के कारण उनका ईश्वरत्व को भूल जाना। काम, क्रोध, मद, मोह, मात्सर्य में पड़कर व्यक्ति ईश्वर के स्वरुप को भूल जाता है। ये सभी तपस्या के मार्ग में आने वाले विघ्न हैं।
कृष्ण भगवान का ताड़ के वृक्षों को गिराना, बकासुर व पूतना का वध, कृष्ण का गोपियों के वस्त्र हरण करने की लीला, गोपियों संग रासलीला, कंस के सत्ताईस असुरों का संहार। अक्रूर को भगवान कृष्ण का अपना स्वरुप दिखलाना। कृष्ण और बलराम का मथुरा जाना व कंस का वध करना।
कृष्ण भगवान का सांदीपनी ऋषि के आश्रम में जाकर केवल चौंसठ दिनों में शिक्षा ग्रहण करना। ऋषि का गुरू दक्षिणा में अपने मरे हुए पुत्र को मांगना व भगवान का उनके पुत्र को वापस लाना और कृष्ण रुक्मिणी विवाह आदि का वर्णन हुआ। सोमवार को कृष्ण की द्वारका व हस्तिनापुर की लीलाओं का वर्णन होगा।
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