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Saturday, August 23, 2025

चिकित्सा छात्रों और प्रोफेसरों के बीच पवित्र संबंध


नित्य संदेश। चिकित्सा शिक्षा केवल पुस्तकों, एनाटॉमी चार्ट्स या क्लीनिकल पोस्टिंग तक सीमित नहीं है—यह शिक्षक और शिष्य के मानवीय संबंध पर आधारित है। एक प्रोफेसर जब व्याख्यान कक्ष में खड़ा होता है, तो उसे यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि वह भी कभी मेडिकल छात्र था। परीक्षा से पहले की नींद रहित रातें, वाइवा-वॉइस की घबराहट, कठिन विषयों को समझने की जद्दोजहद और क्लीनिकल वार्ड्स में अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव—ये सब अनुभव हर प्रोफेसर को अपने विद्यार्थी जीवन की याद दिलाने चाहिए।

हमारे अधिकांश मेडिकल छात्र ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं। उनमें सादगी होती है, झिझक होती है, और अंग्रेज़ी माध्यम की पढ़ाई में असहजता भी। आर्थिक असमानता इस दूरी को और गहरी कर देती है, जिससे कुछ छात्र चुपचाप संघर्ष करते रहते हैं और कुछ आत्मविश्वास से आगे बढ़ जाते हैं। यही वह स्थान है जहाँ प्रोफेसर की असली भूमिका शुरू होती है—सिर्फ़ चिकित्सा पढ़ाना नहीं, बल्कि असुरक्षा, झिझक और डर जैसे अदृश्य घावों को भरना।

एक प्रोफेसर को केवल शिक्षक ही नहीं, बल्कि मार्गदर्शक, संरक्षक और मित्र बनना चाहिए। प्रोत्साहन का एक मधुर शब्द, धैर्यपूर्वक दी गई समझाइश, और आश्वासन भरी मुस्कान—ये सब किसी संकोची छात्र को आत्मविश्वासी डॉक्टर में बदल सकते हैं। छात्रों को केवल ज्ञान की नहीं, बल्कि स्नेह और सहानुभूति की भी ज़रूरत होती है।

हर व्याख्यान कक्ष में अनकही भावनाएँ छिपी होती हैं—सपने, संघर्ष और समस्याएँ। डॉक्टर और प्रोफेसर होने के नाते हमें केवल चिकित्सा पढ़ानी ही नहीं, बल्कि उसे कक्षा में भी जीना चाहिए—छात्रों के व्यवहार को देखना, उनकी समस्याओं को पहचानना और उनके समाधान ढूँढ़ना।

स्वास्थ्य सेवा का भविष्य आज की हमारी शिक्षण करुणा पर निर्भर करता है। यदि हर प्रोफेसर ज्ञान के साथ सहानुभूति, अनुशासन के साथ समझदारी, और अधिकार के साथ स्नेह को जोड़ दे, तो हर छात्र न केवल एक अच्छा डॉक्टर बनेगा बल्कि एक अच्छा इंसान भी। क्योंकि अंततः चिकित्सा शिक्षा केवल डॉक्टर बनाने का साधन नहीं है, बल्कि यह मानवता के सच्चे उपचारक तैयार करने का मार्ग है।

प्रस्तुति
डॉ. अनिल नौसरान 
संस्थापक, *Cyclomed for India*

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