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Thursday, July 3, 2025

शिया धर्म अतीत, वर्तमान और भविष्य के आईने में: मौलाना अब्बास बाकरी

 


-मजलिस के दौरान मौलाना ने किया ईरान और फिलिस्तिन का जिक्र

नित्य संदेश ब्यूरो

मेरठ। 7वीं मुहर्रम को शहर की सभी इमामबारगाहों में इमाम हुसैन (अ.स.) की याद में मजलिस, जुलूस और मातम का सिलसिला जारी रहा। सभी मजलिसों में हज़रत कासिम की शहादत बयान की गई


लाला बाजार स्थित इमामबारगाह छोटी कर्बला में अशरे की मजलिस को संबोधित करते हुए मौलाना सैयद अब्बास बाकरी ने "शिया धर्म का अतीत, वर्तमान और भविष्य" विषय पर विस्तार से बात की। मौलाना बाकरी ने कहा कि हर चीज के तीन काल होते हैं: भूत, वर्तमान और भविष्य। इसी तरह शिया धर्म को भी भूत, वर्तमान और भविष्य के संदर्भ में देखा जा सकता है। पैग़म्बर (स.अ.) की हिजरत के बाद शिया धर्म के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण घटना ग़दीर ख़ुम है, जहाँ पवित्र पैगम्बर (स.अ.) ने अल्लाह के आदेश से हज़रत अली (अ.स.) को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। डेढ़ लाख हाजियों की मजमें में बैअत ली गई और उसी दिन नेतृत्व और इमामत का ऐलान किया गया। उन्होंने स्पष्ट किया कि ग़दीर और कर्बला एक दूसरे से जुड़े हुए हैं; ग़दीर नेतृत्व का ऐलान है, कर्बला इस नेतृत्व की रक्षा के लिए महान बलिदान की अभिव्यक्ति है। ईश्वर की बनाई व्यवस्था को नज़रअंदाज़ करते हुए यज़ीद ने ख़िलाफ़त पर कब्ज़ा कर लिया


जंग में मुस्लिम देशों के शासक केवल बने रहें मूकदर्शक

मौलाना बाकरी ने कहा कि कर्बला की भावना शहादत है। इमाम हुसैन (अ.स) ने अत्याचार और अत्याचारी शासक के सामने अपना सिर झुकाने के बजाय अपना सिर कटाना स्वीकार किया। अगर हम आज शिओं की स्थिति जानना चाहते हैं, तो हमें ईरान को देखना चाहिए, जहां ईरान के युवाओं ने अमेरिका और इजरायल जैसी झूठी शक्तियों के खिलाफ डटकर खड़े होकर उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। दुर्भाग्य से अन्य मुस्लिम देशों के शासक केवल मूकदर्शक बने रहे। उन्होंने कहा कि ईरान के युवाओं ने कर्बला की भावना को अपना आदर्श मानते हुए शहादत को जीवन का लक्ष्य बनाया और इस दृढ़ता और स्वतंत्रता ने उनकी स्थिति को उज्ज्वल बना दिया।


हज़रत कासिम की शहादत सुन रोए सोगवार

नमाज़ ज़ौहरैन के बाद मशहूर वक्ता मौलाना शब्बर हुसैन खाँ ने अज़ा खाना शाह कर्बला वक्फ मंसबिया में "फज़ल-ए- ईलाही और हिदायत की जिम्मेदारी" शीर्षक से लोगों को संबोधित किया। हज़रत कासिम की शहादत पर गमगीन लोग फूट-फूट कर रोए। बड़ी संख्या में अकीदतमंदों ने शिरकत कर उनके पोते का पुरसा हज़रत फातिमा (अ.स.) को दिया। शहर के अन्य इमामबाड़ों में भी तय समय पर मजलिसों और मातम का सिलसिला जारी रहा।


जुलूस में बड़ी संख्या में अकीदतमंदों ने हिस्सा लिया

मुहर्रम कमेटी की मीडिया प्रभारी डॉ. इफ्फत जकिया ने बताया कि मगरिब की नमाज के बादजुलूस-ए- जुल्जनाह दिल्ली गेट थाना स्थित छत्ता अली रजा वेली बाजार से शुरू हुआ। जुलूस इमामबारगाह छोटी कर्बला से होता हुआ अज़ाखाना शाह कर्बला में समाप्त हुआ। इस जुलूस के आयोजक अली हैदर (चांद) थे। जुलूस में शहर की तमाम मातमी अंजुमनों ने नोहा ख्वानी और सीनाजनी की। जुलूस में बड़ी संख्या में अकीदतमंदों ने हिस्सा लिया।

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