नित्य संदेश। महान लोगों के सानिध्य प्राप्त होने पर मनुष्य के समस्त प्रकार के कष्टों का निवारण हो जाता है। मनुष्य जिस प्रकार का चिंतन करता है , जिस प्रकार के लोगों के साथ उठता बैठता है, जिनकी आराधना करता है उसका जीवन उसी प्रकार का होने लगता है। यदि हम हनुमान जी महाराज जैसे महान बलशाली, गुणवान, नीतिवान , प्रभु राम के प्रति समर्पित, अखंड ब्रह्मचारी की आराधना करेंगे तो हमारे जीवन में भी उसी प्रकार के गुण आने लगेंगे।
वर्तमान समय में मनुष्य के विचारों, भावों, चिंतन , चरित्र, व्यवहार आदि में गिरावट आने के कारण व्यक्ति का व्यक्तित्व निम्न स्तर का होता जा रहा है। मनुष्य ने चरित्रहीनता की हदें पार कर दी है। यही कारण है कि नजदीकी रिश्तों में भी दरारें पड़ती जा रहे हैं। जो रिश्ते अति पवित्र माने जाते थे आधुनिकता के प्रभाव से उनमें भी गिरावट आती जा रही हैं। जिसको हम प्रतिदिन देख रहे हैं। हमारे बुजुर्गों ने कहा है कि-" पुरुष को अपनी सगी मां बहन के साथ भी अकेले नहीं रहना चाहिए। इन इंद्रियों का कोई भरोसा नहीं है कब धोखा खा जाए। "
इंद्रियों को हनुमान जी महाराज जैसे अखंड ब्रह्मचर्य ही अपने वश में कर सकते हैं। अपनी इंद्रियों को संयम रखने के लिए हमें हर छण सजग रहना पड़ेगा। कहते हैं मुख से किया गया भोजन अधिक से अधिक 48 घंटे में पच जाता है लेकिन आंखों से देखा और कानों से सुनी हुईं गलत दृश्य और बातें मनुष्य के सात जन्म बेकार कर देते हैं। इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह ना गलत दृश्य को देखें ना गलत बातों को सुनें। यदि ऐसा कहीं हो रहा हो तो मनुष्य को वहां से हट जाना चाहिए। सोशल मीडिया में भी ऐसे दृश्य देखने से बचना चाहिए। मनुष्य की चेतना आज इसलिए गिरती जा रही है क्योंकि वह दिन रात गलत दृश्य को देखता है और सुनता है । जिसके कारण दिन भर वह अपने मस्तिष्क को कूड़ेदान में बदल देता है। सोते समय उसके मस्तिष्क में कूड़े का ढेर लग चुका होता है। जिसके कारण उसे नींद में बाधा आती है। दुस्वप्न स्वप्न आते हैं । रात भर वह ताकता रहता है एवं स्वप्न दोष जैसी बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है।
यदि हम किसी महान पुरुष की आराधना करते हैं तो उनके गुण हमारे जीवन में आना चाहिएं। यदि ऐसा नहीं होता है तो हमारी पूजा आराधना एक प्रकार के पाखंड बनकर रह जाता है। यदि हनुमान जी महाराज के साधक हैं तो उनके कुछ ना कुछ तो गुण हमारे जीवन में परिलक्षित होने चाहिए। यदि हम राम जी के भक्त हैं तो हमारे जीवन में कहीं ना कहीं राम जी की मर्यादा दिखनी चाहिए, भाइयों के प्रति प्रेम होना चाहिए नहीं तो उनकी आराधना करना व्यर्थ है।
वर्तमान समय में मनुष्य की आराधना 'मुख में राम बगल की छूरी' जैसी स्थिति हो चुकी है। वर्तमान समय में लोग अपने दुष्कर्मों को छुपाने के लिए भी भगवान के भक्त बन जाते हैं। क्योंकि सामान्य जनता फिर उन्हें श्रद्धा की नजरों से देखने लगती है । लेकिन उनके हृदय में कहीं ना कहीं एक टीस बनी रहती है कि मैं कितना धूर्त मक्कार हूं जो भगवान को भी धोखे में रख रहा हूं। ऐसा व्यक्ति मन ही मन कुड़ता रहता है। कहते हैं कि चोर व्यक्ति भी ईमानदार साथी चाहता है। दुष्चरित्र व्यक्ति भी चाहते हैं कि उनके परिवार के लोग बीवी बच्चे चरित्रवान हो। लेकिन वह कभी यह नहीं सोचते हैं कि यदि हम चरित्रवान होंगे मर्यादावान होंगे तभी हमारे परिवार में उसकी प्रतिष्ठा हो सकेगी। मनुष्य के जीवन में जब तक चिंतन चरित्र एवं व्यवहार में एकरूपता नहीं होंगे समाज में परिवर्तन होना संभव नहीं है।
प्रस्तुति
आरती दुबे
कवयित्री व लेखिका
लखनऊ, उत्तरप्रदेश।
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