नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। 5 मुहर्रम को पांचवें दिन भी इमाम हुसैन (अ.स.) की याद में शहर के सभी इमामबाड़ों में मजलिस, मातम और जुलूस का सिलसिला जारी रहा। लाला बाजार स्थित इमामबारगाह छोटी कर्बला में अशरा पढ़ने आए मौलाना सैयद अब्बास बाकरी ने "उस्वा ए हुसैनी" शीर्षक के तहत लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि "हर दौर में जब इंसानियत का कारवां गुमराही के अंधेरे में भटकने लगा तो कायनात के मालिक ईश्वर ने अपने चुने हुए नबियों को इंसानियत के कारवां का नेतृत्व करने के लिए भेजा। लेकिन नबी की पहचान, उसकी सच्चाई का सबूत और उसकी नबूवत का सबूत अल्लाह ने उसे चमत्कार के रूप में प्रदान किया। क्योंकि चमत्कार एक ऐसी असाधारण निशानी है, जो इंसानी ताकत के दायरे से परे है और जिसके आगे कला का सबसे बड़ा दावेदार भी नतमस्तक हो जाता है। प्रत्येक नबी को जो चमत्कार प्रदान किया गया, वह उस समय की बौद्धिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक मनोदशा के अनुसार थे, ताकि उस समय के लोग उसे बेहतर तरीके से महसूस कर सकें।
जब फिरौन का दरबार जादूगरों से भरा हुआ था, तो मूसा (अ.स) को वह छड़ी दी गई जो अजगर की शक्ल में बदल गई और जादू तथा जादूगरों को निगल गई, जब चिकित्सा और ज्ञान की चर्चा आम हो गई तो ईसा (अ.स) को मृतकों को जीवित करने और ला ईलाज बीमारीयो को ठीक करने का चमत्कार दिया गया था। लेकिन जब नबियों के सरदार हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स.अ.) को भेजा गया, तो यह वाक्पटुता (भाषा पर महारत), साहस और ज्ञान का युग था। इसलिए, सर्वशक्तिमान ईश्वर ने अपने प्रिय ( मौहम्मद साहब) दो महान चमत्कार प्रदान किए: एक पवित्र कुरान, जो बाकी दुनिया के लिए दिव्य ज्ञान, बुद्धि और प्रकाश का खजाना है। और दूसरा चमत्कार मौला ए कायनात, अली इब्न अबी तालिब (अ.स), जो स्वयं एक चमत्कार और चमत्कार-कार्यकर्ता दोनों हैं। अली (अ.स) प्रकाश का वह मीनार हैं जो न केवल इतिहास का एक हिस्सा हैं, बल्कि कुरान की तरह, न्याय ( क़यामत) के दिन तक पैगंबर की चमत्कारी प्रणाली का एक जीता जागता नमूना हैं।
मौलाना नें आगे कहा, पैगंबर मौहम्मद ( स.अ. ) के बाद कोई पैगंबर नही होगा, लेकिन मुहम्मदी कानून हमेशा रहेगा, और इस कानून के चमत्कार भी हमेशा जीवित रहेंगे तथा न्याय (कयामत) के दिन तक जारी रहेंगे। फर्क सिर्फ इतना है कि कुरान के साथ-साथ अली (अ.स.) के बाद उनके उत्तराधिकारी, मार्गदर्शन की जिम्मेदारी संभाले रहेंगे और कयामत तक मानवता का मार्गदर्शन करेगें। अंत में मौलाना ने इमाम हुसैन ( अ.स) की बहन हज़रत ज़ैनब (अ.स.) के साहब ज़ादे औन (अ.स.) और मौहम्मद (अ.स.) की दिल दहला देने वाली शहादत का बयान किया, जिन्होंने अपनी युवावस्था में अपने नाना पैगंबर (स.अ.) के धर्म को जीवित रखने के लिए कर्बला की तपती रेत पर अपनी जान कुर्बान कर दी। मजलिस में सोज़ ख्वानी ताहिर हुसैन ने की।
नमाज़ ज़ौहरैन के बाद प्रसिद्ध वक्ता मौलाना शब्बर हुसैन खाँ ने अज़ा खाना शाह कर्बला वक्फ़ मंसबिया में अपने शीर्षक "फज़ल-ए- ईलाही और हिदायत की ज़िम्मेदारी" के तहत मजलिस को संबोधित किया। मजलिस में मौलाना ने मौला ए कायनात अली इब्न अबी तालिब के फज़ाईल और अली अकबर की शहादत का बयान किया। मजलिस में मौजूद सोगवार ज़ोर-ज़ोर से रो पड़े। मजलिस में सोज़ ख्वानी फिरोज अली ने की। बड़ी संख्या में अकीदतमंदों ने शिरकत की और हज़रत फातिमा को उनके नवासो का पुरसा दिया। शहर की अन्य इमामबारगाहों में तय समय पर मजलिसें और मातम जारी रहा।
मुहर्रम कमेटी की मीडिया प्रभारी डॉ. इफ्फत जकिया ने बताया कि मनसबिया की मजलिस के बाद जुलूस ए जुल्जनाह कोतवाली थाना के बुढ़ाना गेट स्थित इमामबारगाह नवाब मौहम्मद अली खां से बरामद होकर सत्यम पैलेस रोड, खैरनगर स्टेट बैंक की इमामबारगाहों से होता हुआ छत्ता बुर्जियान की इमामबारगाह से गुजरता हुआ लाला बाजार स्थित इमामबारगाह छोटी कर्बला पहुंचा। वहां शहर की सभी मातमी अंजुमनों ने नोहा ख्वानी की और मातम किया। वहां से अख्तर मस्जिद, अहमद रोड, खैरनगर से होता हुआ वापस आकर बुढ़ाना गेट इमामबारगाह पर समाप्त हुआ। जुलूस के आयोजक हैदर अली और हैदर मेहदी थे। जुलूस में शहर की सभी मातमी अंजुमन ने नोहाखानी की और मातम किया ।इस अवसर पर बड़ी संख्या में अकीदतमंद शामिल रहे।
No comments:
Post a Comment