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निहत्थे थे बेसहारा,
धर्म पूछकर मारा,
कायर है वे आतंकी,
हिंदुओं के हत्यारे।
मलेच्छ, क्रूर, विधर्मी,
मिले हुए सहधर्मी,
हिंदुओं से करा छल,
पीड़ित रो पुकारे।
नेकी से नहीं वाकिफ,
हिंदू बस काफिर,
झुकाना चाहते है वे,
खुद को न सुधारे।
अब मत सहो इन्हें,
सबक सिखाएं उन्हें,
खून का बदला खून,
अब दुश्मन हारे।
सपना सी.पी. साहू 'स्वप्निल'
इंदौर (म.प्र.)
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