उर्दू विभाग ने "20वीं सदी में पत्र-लेखन" पर ऑनलाइन कार्यक्रम किया गया आयोजित
नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। पत्र एक बहुत ही दिलचस्प चीज़ है. एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को पत्र लिखता है और तीसरा व्यक्ति उसे सुनता है। पत्रों में वार्तालाप और दर्शन दोनों होते हैं। उनमें मनोरंजन और विचार के क्षण हैं। इन पत्रों को बार-बार पढ़ने का मन करता है। कोई भी व्यक्ति दोबारा फोन नहीं सुन सकता। यह शब्द थे प्रख्यात शोधकर्ता एवं आलोचक प्रोफेसर ज़मान आजुर्दा (पूर्व अध्यक्ष, उर्दू विभाग, कश्मीर विश्वविद्यालय) के, जो उर्दू विभाग द्वारा आयोजित "बीसवीं सदी में पत्र लेखन" विषय पर बतौर मुख्य अतिथि अपना वक्तव्य दे रहे थे। उन्होंने कहा कि पत्र साहित्य को बढ़ाते हैं और प्रेरणा भी प्रदान करते हैं।
कार्यक्रम का शुभारंभ सईद अहमद सहारनपुरी ने पवित्र कुरान की तिलावत से हुआ। नात फरहत अख्तर ने पेश की। अध्यक्षता प्रोफेसर सगीर अफ्राहीम ने की। डॉ. तकी आबिदी (कनाडा), डॉ. शाहनाज़ कादरी [अध्यक्ष, उर्दू विभाग, गवर्नमेंट डिग्री कॉलेज, सिदरा, जम्मू] और लखनऊ से आयुसा की अध्यक्ष प्रोफेसर रेशमा परवीन ने वक्ता के रूप में भाग लिया। स्वागत भाषण डॉ. इरशाद स्यानवी ने दिया और संचालन डॉ. शादाब अलीम ने किया।
इस अवसर पर विषय प्रवेश कराते हुए प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी ने कहा कि जब हम पत्र लेखन की बात करते हैं तो एक बड़ा नाम जो दिमाग में आता है, वह है अल्लामा इकबाल। उन्होंने अपने समकालीनों को कई पत्र लिखे। सज्जाद ज़हीर, मंटो, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद आदि ने अनेक पत्र लिखे और पत्रों के महत्व को समझाया। आज का कार्यक्रम पत्र लेखन के संबंध में बहुत महत्वपूर्ण है। बीसवीं सदी में लिखे गए पत्रों का महत्व इक्कीसवीं सदी में भी जारी है। कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. शहनाज़ कादरी ने कहा कि बीसवीं सदी में पत्र-लेखन पर आज की गई चर्चा बहुत महत्वपूर्ण है। इकबाल, गालिब और अबुल कलाम आज़ाद के पत्रों ने पाठकों को एक नयी दिशा और नई सोच देने का प्रयास किया है। आयुसा की अध्यक्ष प्रोफेसर रेशमा परवीन ने कहा कि इकबाल, गालिब आदि के पत्रों का बीसवीं सदी में बहुत महत्व रहा है। इनसे इस युग के इतिहास, सामाजिक परिस्थितियों और साहित्यिक स्थिति को आसानी से समझा जा सकता है। हस्तलिखित पत्रों का बहुत महत्व है।
प्रख्यात शोधकर्ता एवं आलोचक डॉ. तकी आबिदी ने कहा कि मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के पत्रों को कई लोग निबंध कहते थे, लेकिन हमें यह देखने की जरूरत है कि आज उनका क्या महत्व है। चाहे वह अल्लामा इकबाल के पत्र हों या अन्य मित्रों के, हमें यह देखना होगा कि उनका महत्व और उपयोगिता क्या है। पत्रों के माध्यम से कई समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। यदि आप इकबाल, जगन्नाथ आजाद आदि के पत्रों को पढ़ेंगे तो आपको पता चलेगा कि उनमें सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान छिपा है। इस अवसर पर उर्दू विभाग के शोध छात्र शाहे ज़मन ने “मौलाना आज़ाद की गद्य शैली: विचारों की रोशनी में” शीर्षक से और उज़मा सहर ने “उर्दू पत्र लेखन : एक समीक्षा” शीर्षक से अपने विचारपूर्ण लेख प्रस्तुत किए।
अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रोफेसर सगीर अफ्राहीम ने कहा कि आज भी पत्र लिखे जा रहे हैं। जब हम कोई साहित्यिक स्तंभ पढ़ते हैं तो उस पर प्रतिक्रिया भी करते हैं, लेकिन उसमें व्यक्त भावनाएं हमें प्रभावित करती हैं। पत्रों ने भी अदालत [काकोरी मामले] के समक्ष अपना महत्व सिद्ध कर दिया है। उन्होंने आगे कहा कि आज भी पत्रों के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। जब भी पत्र आते थे तो लोग खुश होते थे। हर जगह चर्चा हो गई कि पत्र आ गया है। पत्रों की शैलियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं। आज हम जो पत्र लिखते हैं उनका भी बहुत महत्व है। आज भी हमारे परिवारों में दादा, दादी, चाचा आदि बुजुर्गों के पत्र रखे हुए हैं। कार्यक्रम से डॉ. आसिफ अली, डॉ. अलका वशिष्ठ, मुहम्मद शमशाद एवं छात्र जुड़े रहे।
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