Breaking

Your Ads Here

Friday, April 4, 2025

वक्फ बोर्ड बिल और नीतीश कुमार का राजनीतिक भविष्य


नित्य संदेश। भारत की राजनीति में समय-समय पर ऐसे मुद्दे उठते रहे हैं, जो सत्तारूढ़ दलों के लिए चुनौती बन जाते हैं। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित वक्फ बोर्ड बिल ऐसा ही एक मुद्दा बनकर सामने आया है, जिसने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है। यह विधेयक ऐसे समय में चर्चा में आया है जब बिहार में इस वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए यह विधेयक एक बड़ी राजनीतिक परीक्षा बन सकता है, क्योंकि बिहार में मुस्लिम मतदाता कई सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

वक्फ बोर्ड बिल का प्रभाव और मुस्लिम मतदाता
बिहार की राजनीति में मुस्लिम समुदाय का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। राज्य की लगभग 17% आबादी मुस्लिम है, और वे कई विधानसभा सीटों पर परिणाम तय करने की स्थिति में हैं। केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए वक्फ बोर्ड बिल को मुस्लिम समुदाय अपनी धार्मिक और सामाजिक स्वायत्तता पर हस्तक्षेप के रूप में देख रहा है। यदि इस बिल में ऐसे प्रावधान शामिल होते हैं, जो वक्फ संपत्तियों के नियंत्रण को सरकार के अधीन करने की दिशा में जाते हैं, तो यह मुस्लिम मतदाताओं में असंतोष पैदा कर सकता है। नीतीश कुमार, जो अब तक समावेशी राजनीति और सोशल इंजीनियरिंग के लिए जाने जाते हैं, इस मुद्दे को लेकर दुविधा में नजर आ रहे हैं। एक ओर उन्हें केंद्र सरकार के साथ अपने संबंध बनाए रखने हैं, तो दूसरी ओर बिहार के मुस्लिम मतदाताओं को भी संतुष्ट रखना है।

नीतीश कुमार की राजनीतिक रणनीति: 
नीतीश कुमार ने इस विवाद को शांत करने के लिए मुस्लिम मतदाताओं को संशोधन का आश्वासन दिया है। उन्होंने कहा है कि उनकी सरकार वक्फ बोर्ड बिल में ऐसे किसी भी प्रावधान का विरोध करेगी, जो मुस्लिम समाज के हितों के खिलाफ हो। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या मुस्लिम मतदाता इस वादे से संतुष्ट होंगे?

नीतीश कुमार की रणनीति तीन प्रमुख बिंदुओं पर टिकी है:
1. संशोधन का वादा: नीतीश कुमार यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे मुस्लिम हितों की रक्षा करेंगे।
2. बीजेपी से संबंध संतुलित रखना: वे इस मुद्दे को लेकर सीधे टकराव से बच रहे हैं ताकि केंद्र सरकार से उनके रिश्ते प्रभावित न हों।
3. महागठबंधन और विपक्ष की चुनौती: राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं। अगर नीतीश इसे सही तरीके से नहीं संभालते, तो मुस्लिम वोट बैंक तेजस्वी यादव के पक्ष में जा सकता है।

बिहार की राजनीति में चुनावी गणित बेहद जटिल है। 2020 के विधानसभा चुनावों में एनडीए को 125 सीटें और महागठबंधन को 110 सीटें मिली थीं। यह अंतर काफी कम था और मुस्लिम मतदाताओं के झुकाव से सीटों का संतुलन बदल सकता है। अगर मुस्लिम वोटर नीतीश से नाराज होकर विपक्ष के साथ चले जाते हैं, तो इसका सीधा लाभ राजद और कांग्रेस को होगा। हालांकि, यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि नीतीश कुमार का सवर्ण और गैर-यादव ओबीसी वोट बैंक काफी मजबूत है, और वे अपनी सुशासन व विकास की छवि के बल पर नुकसान की भरपाई करने की कोशिश कर सकते हैं।

वक्फ बोर्ड बिल निश्चित रूप से नीतीश कुमार के लिए एक बड़ी राजनीतिक चुनौती है। यदि वे इस मुद्दे को सही तरीके से नहीं संभालते, तो उनकी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) को मुस्लिम वोट बैंक में भारी नुकसान हो सकता है। हालांकि, वे अभी भी संशोधन का वादा और विकास के एजेंडे के माध्यम से मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर सकते हैं। आने वाले महीनों में नीतीश कुमार की रणनीति और इस मुद्दे पर उनकी सरकार की भूमिका तय करेगी कि वे बिहार की राजनीति में अपनी पकड़ बनाए रख पाएंगे या नहीं। विधानसभा चुनाव में वक्फ बोर्ड बिल एक बड़ा मुद्दा बन सकता है, और इसका असर नीतीश कुमार के राजनीतिक भविष्य पर पड़ना तय है।

मितेंद्र कुमार गुप्ता 
प्रेस प्रवक्ता 
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ

No comments:

Post a Comment

Your Ads Here

Your Ads Here