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Wednesday, April 2, 2025

संसद में प्रधानमंत्री के सामने पढ़ा गया मेरठ के कवि अजहर इकबाल का मुक्तक


नित्य संदेश ब्यूरो 
मेरठ: संसद में वक्फ बिल के दौरान झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसद विजय हसदीया ने मेरठ के प्रसिद्ध कवि अज़हर इक़बाल का मुक्तक पढा

"गाली को प्रणाम समझना पड़ता है
मधुशाला को धाम समझना पड़ता है 
आधुनकि कहलाने की अंधी ज़िद में 
रावण को भी राम समझना पड़ता है।" 

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह द्वारा नेहरू जी के लिए कहा गया ये वाक्य अक्सर अपनी प्रामाणिकता सिद्ध करता रहता है कि "राजनीति जब लड़खड़ाती है, तब साहित्य ही उसका सहारा बनता है " भारतीय संसद में अक्सर डिबेट्स के दौरान ये देखने में आता है के सांसद या मंत्री अपने वक्तव्य को प्रभावी बनाने के लिए कविताओं और शायरी का सहारा लेते हैं इस बार भी वक्फ बिल को संसद में पेश करने के दौरान कविता गूंजती हुई सुनाई दी, और इस बार ये श्रेय मेरठ में निवास कर रहे लाखों दिलों की धड़कनों पर अपना नाम लिख देने वाले युवा कवि अज़हर इक़बाल के हिस्से आया जब उनका एक मुक्तक झारखंड मुक्ति मोर्चा के सांसद विजय हसदीया ने सांसद की कार्यवाही के दौरान पढ़ा,

बताते चलें के बीते कुछ वर्षों से अजहर इक़बाल ने हिंदी उर्दू शायरी के लगभग सभी प्रतिष्ठित कार्यक्रमों में बुढ़ाना और मेरठ का प्रतिनिधित्व किया है, लाल किला कवि सम्मेलन से लेकर रेख़्ता, साहित्य एकेडमी, और शंकर शाद, जश्न ए बहार जैसे अदबी मुशायरों का हिस्सा रहे हैं, लगभग 10 बार वो विदेशों में भारतीय साहित्य और संस्कृति का ध्वज लेकर गए हैं जहां उन्हें मान सम्मान से नवाज़ा गया ।

सोनी टीवी पर आने वाले प्रसिद्ध कॉमेडी शो कपिल शर्मा शो, आपका अपना ज़ाकिर में भी आप एक अतिथि कवि के रूप में शिरकत कर चुके हैं. सुष्मिता सेन, श्रद्धा कपूर, राजकुमार राव, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, विशाल भारद्वाज, तिग्मांशु धूलिया जैसी हिंदी सिनेमा की बड़ी हस्तियों ने उनकी रचनाओं की तारीफ़ की है,

ज्ञानपीठ अवार्ड से नवाज़े जा चुके विनोद कुमार शुक्ल ने उनकी कविता के बारे में कहा था, "अज़हर इक़बाल की कविता भाषाओं के संयोग से एक नया रस पैदा करती है"

भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्ला खां को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा गया उनका ये शेर एक नज़ीर पेश करता है

है साक्षी काशी का हर एक घाट अभी तक
होता था भजन आपका शहनाई हमारी

गुलज़ार, जावेद अख़्तर, गोपाल दास नीरज प्रोफेसर वसीम बरेलवी, निदा फ़ाज़ली, राहत इंदौरी, कुमार विश्वास जैसे बड़े साहित्यकारों के साथ मंच साझा कर चुके अज़हर इक़बाल ने अपनी कविता के माध्यम से भाषाओं के दरम्यान एक सेतु बनाने की कोशिश की है उनकी लोकप्रियता अब देश की सरहदों से निकल कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गई है जो ये साबित करती है के उनकी ये कोशिश कामयाब हो रही है

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