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Tuesday, April 22, 2025

निजी स्कूलों की मनमानी: निजी स्कूलों की मनमानी शुरू, एक ही दुकान से मिल रही महंगी किताबें, विभाग बना लापरवाह


अर्जुन देशवाल
नित्य संदेश, बहसूमा। एक अप्रैल से शैक्षिक सत्र शुरू होने के साथ ही निजी स्कूलों की मनमानी भी शुरू हो गई है। शासन ने फीस न बढ़ाने का निर्देश जारी किया था, लेकिन स्कूलों ने अपनी सुविधा की भरपाई के लिए मनमानी फीस बढ़ा दी है। 20 से 30 पेज की प्रथम, केजी कक्षा की किताबों पर 149 से 230 रूपए तक रेट अंकित है। ये किताबें उसी जगह मिलेंगी, जिसका पता स्कूल बताता है। 

नर्सरी की नई किताबें तो ऐसी है, जिनमें एक पेज पर केवल ए फॉर एप्पल ही लिखा है। सरकार भले ही नई शिक्षा नीति से तमाम परिवर्तन का ढिंढोरा पीट रही हो, लेकिन इन स्कूलों की निगरानी का कोई तंत्र नहीं है। कक्षा 1 से 8 तक की मान्यता होने के बावजूद यहां अवैध रूप से हाईस्कूल व इंटर की कक्षाएं अवैध रूप संचालित की जा रही है। इनके जरिए भी इन स्कूलों की बड़ी कमाई होती है। ज्यादातर जगहों पर अभिभावकों को किताबें स्कूल के अंदर से या मनचाही दुकानों पर उपलब्ध कराई जा रही है, अब यह किताबें मिलने का स्थान स्कूल प्रबंधक खुद बता रहा है। अभिभावक जब बच्चों को दाखिला दिलाने आते हैं तो ठिकाने की जानकारी दे दी जाती है। ये काम ज्यादातर उन स्कूलों में हो रहा है,जिनके पास मान्यता ही नहीं। प्राइवेट स्कूलों की मनमानी तो यह है कि यह हर वर्ष नए सिलेबस की किताबें लगा रहे हैं।ऐसे में अगर किसी का बच्चा दूसरी कक्षा में पढ़ता है तो पहली कक्षा वाले बच्चे के काम यह किताबें नहीं आएंगी। वहीं एक अप्रैल से स्कूलों में नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो गया है। स्कूलों में दाखिला प्रक्रिया भी जोरों पर चल रही है। परंतु अभी तक शिक्षा विभाग ने किसी भी निजी स्कूलों पर कार्रवाई नहीं की है।जबकि अधिकारियों को केवल स्कूलों में जाकर छापेमारी करनी है, उन्हें किताबों के ढेर मिल जाएंगे।

किताबों में चल रहा कमीशन का खेल 
कार्रवाई के नाम पर शिक्षा विभाग फेल स्कूल खुलते ही शिक्षा माफियाओं ने बच्चों के परिजनों की जेबों पर डाका डालना शुरू कर दिया है। निजी स्कूलों द्बारा उनके मनचाहे प्रकाशकों की कापी किताबें लेने के लिए परिजनों पर दबाव बनाया जा रहा है। इनमें क्षेत्र के अधिकांश स्कूल शामिल हैं।जिन स्कूलों में बच्चों को एनसीईआरटी की किताबें लगानी चाहिए,वे निजी प्रकाशकों की किताबें पढ़ने को मजबूर कर रहे हैं। क्योंकि प्रकाशकों की ओर से स्कूलों को मोटा कमीशन दिया जा रहा है।यह कमीशन 30 से 50 फीसद हैं। किताबें कौन से प्रकाशक की लगेगी यह भी कमीशन पर निर्भर है।

अभिभावक बोलें - स्कूल संचालक खुद ही चला रहे अपना सिलेब्स 
अभिभावकों का कहना है कि बड़ी संख्या में स्कूलों ने उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल से कक्षा 8 तक की मान्यता ले रखी है। इसमें हिंदी और अंग्रेजी माध्यम दोनों की मान्यता है। मान्यता के साथ ही परिषद की ओर से पाठ्यक्रम और पुस्तकें भी निर्धारित है, लेकिन स्कूल संचालक खुद अपना सिलेब्स तय करके अपनी सुविधा के अनुसार प्रकाशकों से पुस्तकें छपवाकर उनकी मनमानी कीमत निर्धारित करके उससे बड़ा मुनाफा कमा रहे हैं।

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