15 अगस्त 1947 को था 27 रमजान, इस्लामिक साल था 1366 हिजरी, आजादी के तीन दिन बाद मनाई गई
थी ईद
लियाकत मसूरी
नित्य संदेश, मेरठ। 15 अगस्त 1947 को रमजान माह का 27वां रोजा था। दिन शुक्रवार और अलविदा जुमा था। 14 अगस्त 1947 की रात्रि को ही भारत के आजाद होने का एलान हो गया था और अगले दिन 15 अगस्त को अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए। यह दिन इतिहास के पन्नों में हमेशा याद किया जाएगा। क्योंकि इस दिन रमजान माह का अलविदा जुमा था। आजादी के महज तीन दिन बाद ही भारत में ईद मनाई गयी थी। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्मों के लोगों ने गले मिलकर एक दूसरे को मुबारकबाद दी थी।
रमजान माह अंतिम सफर पर है। 28 मार्च (आज) अलविदा रोजा है और 27वां रमजान है। रमजान माह का अलविदा रोजा इतिहास के
पन्नों में हमेशा दर्ज रहेगा। यह दिन इसलिए यादगार है, क्योंकि अलविदा रोजे को भारत
आजाद हुआ था। भारतियों ने खुली हवा और आजादी में सांस ली थी। पहली बार कोई त्यौहार
'अलविदा रोजा' आजादी में मना था। आजादी के महज
तीन दिन बाद ही ईद-उल-फितर की खुशियां आयी थी। इस्लामिक कलेंडर के मुताबिक यह 1366 हिजरी थी। 19 अगस्त 1947 और पहली शव्वाल 1366 को सभी धर्मों के लोगों ने ईदगाह में पहुंचकर एक
दूसरे को मुबारकबाद दी थी।
अलविदा जुमा पर रहता है सरकारी अवकाश
अलविदा जुमा यानि रमजान माह का आखिरी शुक्रवार। अलविदा जुमा की विशेषता ये है
कि इसमें खुत्बा (जुमे की नमाज से पूर्व पढ़ी जाने वाली आयत) अन्य खुतबाओं से अलग होता है। हालांकि, अलविदा जुमा की अन्य मुल्कों
में कोई ज्यादा मान्यता नहीं है। क्योंकि इस्लामिक मुल्कों में पहले से ही
शुक्रवार को अवकाश रहता है। सउदी अरब में तो अलविदा जुमा पर तीन दिन का अवकाश रहता
है, लेकिन भारत में अलविदा जुमा के दिन सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों में
अवकाश रहता है और इसकी मान्यता अन्य अवकाशों की तरह ही है। अलविदा जुमे को तवज्जोह
देने का कारण है कि इस रोज भारत आजाद हुआ था, तभी से सरकारी अवकाश की घोषणा कर दी गई थी।
ये कहना है शहर काजी का
इस संबंध में शहर काजी जैनुस प्रोफेसर डा. सालिकीन सिद्दीकी का कहना है कि अलविदा जुमा अन्य
शुक्रवारों की तरह ही है। इस्लाम धर्म में अलविदा जुमे का कोई जिक्र नहीं है। 27 रमजान 1366 हिजरी यानि 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ था, इसी कारण इस जुमे को हिंदुस्तान में खास अहमियत दी गई। सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं में
अवकाश घोषित किया गया। इसका दूसरा कारण ये भी है कि सभी मुस्लिम रोजे और नमाज से
महरूम न रहे, अलविदा रोजे को अहमियत दी जाती
है।
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