नित्य संदेश। शहर काजी जैनुल साजिद्दीन का चले जाना, यानि एक युग का अंत हो जाना। शहर का जब-जब माहौल बिगड़ा, सांप्रदायिक सौहार्द को आग लगी, तब-तब शहर काजी ने आगे बढ़कर अमन कायम किया। मुस्लिम ही नहीं, उनकी लोकप्रियता हर मजहब, धर्म के लोगों में थी, सब उनसे स्नेह रखते थे। आज सुबह जैसे ही ये खबर मिली की शहर काजी नहीं रहें, ऐसा लगा जैसे समय ठहर गया हो, क्योंकि ऐसी शख्सियत बार-बार पैदा नहीं होती।
मेरा अक्सर उनसे मिलना होता रहता था, कई बार उनसे साक्षात्कार लिया, हर इंटरव्यू में उनका देश प्रेम साफ झलकता था। हिदू-मुस्लिम के बीच पैदा होती दरार का दुख उनके अक्श पर साफ दिखता था। उनका मन बेदाग था, निर्मल था, स्वच्छ था, पवित्र था। ऐसी महान हस्ती फिर जन्म नहीं लेती। मेरठ ने आज ऐसा व्यक्ति खो दिया, जिसकी भरपाई कभी पूरी नहीं की जा सकती। इस अस्तित्व को कभी भरा नहीं जा सकता।
शहर काजी उलमा ही नहीं थें, वे धार्मिक और शैक्षिक जगत की एक प्रमुख हस्ती थें। वे अलीगढ़ मुस्लिम विवि में प्रोफेसर रह चुके थे, अरबी भाषा में उन्होंने पीएचडी कर रखी थी। इस्लामी शिक्षा व अरबी भाषा के प्रचार-प्रसार में उनका महत्वपूर्ण योगदार रहा। इंतकाल से एक दिन पहले ही यानि रविवार को होली और जुमा एक साथ देखते हुए उन्होंने जुमे की नमाज में बदलाव का एलान कर दिया था। उनके इस फैसले की चारों ओर सराहना हुई थी।
शहर काजी का जन्म 1942 में हुआ था। वे 1991 से मेरठ के शहर काजी थे। अपने पद को उन्होंने बाखूबी संभाला। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा वे राष्ट्रपति पुरस्कार से भी नवाजे जा चुके थे। सपा सरकार यानि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उनको उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड का चेयरमैन नियुक्त किया था। अब उनके पुत्र प्रोफेसर सलेकिन सिद्दीकी शहर काजी की विरासत को आगे बढ़ाएंगे।
लेखक
लियाकत मंसूरी
सम्पादक, नित्य संदेश
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