नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। हमें देखना है कि इस समय कितने कृष्णचन्द्र हमारे सामने हैं। क्योंकि कृष्णचन्द्र ने उस युग में जो उत्कंठा महसूस की थी, उसे कलमबद्ध कर हम तक पहुंचाया। मेरी दृष्टि में यदि किसी लेखक या कलाकार का एक निबंध या कविता ही साहित्य की कसौटी पर खरा उतरता है तो वह महान लेखक या कलाकार है। किसी भी लेखक या कलाकार की सभी कृतियाँ महत्वपूर्ण नहीं होतीं। कृष्ण चन्द्र को समझने के लिए हमें स्वयं को व्यापक बनाना होगा। उनके बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका है। इसे समझने और ईमानदारी से अपने पाठकों तक पहुंचाने की जरूरत है। ये शब्द थे चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग और इंटरनेशनल यूथ उर्दू स्कॉलर्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित साहित्यिक गोष्ठी "अदबनुमा" के अन्तर्गत "कृष्णचंद्र के कथा लेखन" विषय पर जर्मनी के जाने-माने लेखक आरिफ नकवी के, जो अपना अध्यक्षीय भाषण दे रहे थे। उन्होंने आगे कहा कि कृष्ण चंद्र का कथा साहित्य उर्दू साहित्य का अमूल्य स्रोत है।
इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत बीए ऑनर्स के छात्र मुहम्मद ईसा ने तिलावत से की। प्रसिद्ध कथा समीक्षक प्रोफेसर कुद्दूस जावेद [पूर्व अध्यक्ष, उर्दू विभाग, कश्मीर विश्वविद्यालय]ने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया। केरल से डॉ. केपी शम्सुद्दीन और उर्दू विभाग के छात्रों फरहत अख्तर और लाइबा ने पेपर लेखकों के रूप में भाग लिया। जबकि वक्ता के रूप में आयुसा की अध्यक्षा प्रो. रेशमा परवीन ऑनलाइन उपस्थित रहीं। स्वागत भाषण श्रुति ने, परिचय डॉ. इरशाद स्यानवी ने और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. आसिफ अली ने किया।
विषय प्रवेश कराते हुए डॉ. इरशाद सयानवी ने कहा कि उर्दू साहित्य में कृष्ण चंद्र किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। उनके उपन्यासों और उपन्यासों ने पाठक को बहुत प्रभावित किया है। उनकी महत्ता का रहस्य इस बात में है कि उनकी रचनाओं का लगभग सात भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है। उन्हें उर्दू से प्यार था. जिसका उदाहरण उनकी कहानियों, उपन्यासों और अनुवादों में मिलता है।
इस मौके पर उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर असलम जमशेद पुरी ने कहा कि कृष्ण चंद्र की शैली अनूठी है. कृष्णचन्द्र ने रोमांस को जो ऊँचाई दी है, वह कोई दूसरा कथाकार नहीं दे सका। उनकी कहानियाँ पाठकों को रुलाती और पीड़ा पहुँचाती थीं। उर्दू विधा पर कृष्णचन्द्र का प्रभाव आज भी स्पष्ट है। उर्दू साहित्य में ऐसे कथाकार कम ही देखने को मिलते हैं। इस दौरान लाइबा ने "कृष्ण चंद्र का उपन्यासीकरण", फरहत अख्तर ने "कृष्ण चंद्र का फिक्शन" और डॉ. केपी शम्सुद्दीन ने "कृष्ण चंद्र: एक अद्भुत कलाकार" पर उत्कृष्ट निबंध प्रस्तुत किए।
मुख्य अतिथि प्रोफेसर कुद्दूस जावेद ने कहा कि नई सदी में हमें देखना चाहिए कि अब नई चीजें आ गई हैं, नया अंदाज आ गया है। इस्मत, बेदी, मंटो और कृष्णचंद्र आदि पर तो बहुत कुछ लिखा जा चुका है लेकिन विचार यह है कि हम इस्मत, बेदी, मंटो आदि को कैसे पढ़ें। कृष्णचंद्र मूलतः धार्मिक संघर्ष, आर्थिक असमानता के द्वंद्व को प्रस्तुत करते हैं कृष्णचंद्र की कथाएँ वैयक्तिक हैं। कृष्णचन्द्र की उपन्यासों और किंवदंतियों की कला विशाल और अद्वितीय है
प्रोफेसर रेशमा परवीन ने कहा कि आधुनिक काल में भी कृष्णचंद्र का महत्व है। उनके कथा साहित्य में समाज और समाज की तमाम समस्याएं मौजूद हैं। जिन्हें हम आज भी अपनी कृतियों के माध्यम से महसूस करते हैं, साहित्यिक क्षेत्र में उन्हें सदैव याद किया जाता रहेगा।
कार्यक्रम से डॉ. शादाब अलीम, डॉ. अलका वशिष्ठ, सईद अहमद सहारनपुरी, सैयदा मरियम इलाही, मुहम्मद शमशाद, शाहे ज़मन, फैजान जफर एवं अन्य छात्र ऑनलाइन एवं ऑफलाइन जुड़े रहे।
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