अनम शेरवानी
नित्य संदेश, मेरठ। स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय के सरदार पटेल सुभारती विधि संस्थान स्थित डॉ. भीमराव अम्बेडकर शोधपीठ द्वारा एक विशिष्ट व्याख्यान का आयोजन ‘‘संविधान के निर्माण में डॉ० भीमराव अम्बेडकर की भूमिका का विश्लेषण-समान नागरिक संहिता के संदर्भ में’’ विषय पर किया गया। इस व्याख्यान का आयोजन सुभारती लॉ कॉलेज के निदेशक राजेश चन्द्रा (पूर्व न्यायमूर्ति, उच्च न्यायालय, प्रयागराज) के मार्ग दर्शन में तथा संकाय अध्यक्ष प्रो. डॉ. वैभव गोयल भारतीय के संरक्षण में किया गया।
डॉ० प्रेम चन्द्रा, शोध अधिकारी, डॉ० भीमराव अम्बेडकर शोध पीठ, द्वारा मुख्य वक्ता के तौर पर ‘‘संविधान के निर्माण में डॉ० भीमराव अम्बेडकर की भूमिका का विशलेषण’’ विषय पर व्याख्यान दिया गया । उन्होंने डॉ० भीमराव अम्बेडकर के जीवन वृŸा के विषय में विद्यार्थियों को बताया कि किस प्रकार भारतीय संविधान में अनुच्छेद 44 (समान नागरिक संहिता) के पक्ष में डॉ० भीमराव अम्बेडकर द्वारा कार्य किया गया । उन्होने बताया कि किस प्रकार अम्बेडकर ने तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों विशेषता जाति -पाति, छुआछूत, प्रगति के रास्ते में बाधा उत्पन्न करती थीं। इसके बाद उन्होंने बी०आर० अम्बेडकर द्वारा भारत के संविधान में रखे जाने वाले विभिन्न अनुच्छेदों तथा उनके महत्व के विषय में बताया । भारतीय संविधान में समाहित अनुच्छेद 44 एवं उसकी जरूरत क्यों हैं तथा उस विषय पर संविधान समिति के मध्य हुई बहस पर बोलते हुए उन्होने बताया कि संविधान निर्मात्री सभा विभिन्न गुटों में बँट गई थी । संविधान सभा में सदस्यों की ओर से पक्ष और विपक्ष मे तर्क रखे गए थे। ज्ञात हो कि यूनिफॉर्म सिविल कोड राज्य के नीति निदेशक तत्व वाले हिस्से अर्थात् भाग 4 में होने की वजह से इसकी प्रकृति अलग हो जाती है। मौलिक अधिकार देना राज्य के लिए बाध्यकारी है। उन्होंने बताया कि यूनिफॉर्म सिविल कोड से धार्मिक पहलू के साथ कानूनी पहलू भी जुड़ा है। इस मुद्दे पर संविधान निर्मात्री सभा के बीच बहुत लम्बी बहस हुई थी । इस विषय के पक्ष में बोलने वालों में के०एम० मुंशी, अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर व बी० आर० अम्बेडकर तथा विरोध करने वालों में मुख्य तौर पर मोहम्मद इस्माइल, नजीरूद्दीन अहमद, महबूब अली बेग, बी० पोकर साहिब बहादुर व हुसैनइमाम मुख्य रूप से शामिल थे। बहस का मुद्दा निजी कानून को छोड़ने के लिए बाध्य नहीं करना, और यदि बदला जाए तो पूरे समाज की मंजूरी तथा विरासत, विवाह, उŸाराधिकार तलाक, बंदोबस्ती और कई अन्य मामलों के संदर्भ में इस संशोधन पर सिर्फ मुसलमान समुदाय के दृष्टिकोण से नहीं बल्कि विभिन्न समुदायों के दृष्टिकोण से विचार विमर्श किया जाना चाहिए। डॉ० बी० आर० अम्बेडकर के ड्राफ्ट अनुच्छेद 35 पर बहस के बाद अपनी बात रखते हुए कहा कि विवाह और उत्तराधिकार ही ऐसे दो मुद्दे हैं, जो यूनिफॉर्म, सिविल कोड के दायरे से बाहर रह गए हैं। अपने वक्तव्य में उन्होंने विरोध कर रहे सदस्यों को आश्वासन देते हुए कहा कि अनुच्छेद 35 में ये कही नहीं कहा गया हैं कि संहिता बनने के बाद राजा इसे सभी नागरिकों पर इसलिए लागू करेगा, क्योंकि वे नागरिक हैं। अपनी बात को खत्म करते हुए अम्बेडकर का कहना था कि नए कोड में विवाह और उत्तराधिकार को शामिल किया जाएगा, जो कि मौजूदा कोड के दायरे में नहीं है। आखिर में अनुच्छेद 35 को बिना किसी संशोधन के उसी दिन संविधान सभा द्वारा अपना लिया गया और बाद में संविधान के आखिरी प्रारूप में इसे भाग 4 में अनुच्छेद 44 की संख्या के साथ शामिल किया गया ।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में व्याख्यान पर आधारित एक प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें विद्यार्थियों द्वारा उत्साहपूर्वक प्रतिभागिता की गई। इसमें विद्यार्थियों से डॉ० बी० आर० अम्बेडकर के जीवन, शिक्षा, कार्य आदि पर आधारित विभिन्न प्रश्न पूछे गए, जिनका जवाब विद्यार्थियों द्वारा उत्साह पूर्वक दिया गया। प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम का संचालन शालिनी गोयल द्वारा किया गया । सही उत्तर देने वाले विद्यार्थी को चॉकलेट देकर उत्साहवर्धन किया गया। पावनी अरोरा, दीया, व्योम, दीपाशना, रामबाबू, अथर चौहान, अंशुराज, ओमठाकुर, जान-ए-आलम, दृष्टि कौशिक, पीयूष, प्रचण्ड, कार्तिक, जोया, हर्ष वर्मा आदि विद्यार्थियों द्वारा प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता में उत्साहपूर्वक प्रतिभागिता की गई।
कार्यक्रम में डॉ० सारिका त्यागी, सोनल जैन, अरशद आलम, आशुतोश देशवाल, हर्शित आदि शिक्षक-शिक्षिकाएं तथा बड़ी संख्या में विद्यार्थी उपस्थित रहे।
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