महेंद्र कुमार रस्तोगी
नित्य संदेश, डेस्क। समय चक्र निर्वाध गति से निरन्तर आगे बढ़ रहा है। परिवर्तन होना प्रकृति का नियम है। यह शाश्वत है, लेकिन जानबूझ कर भी हम अनजान बनने का नाटक करें तो बुद्धि मत्ता नहीं है। उम्र के ढलते पड़ाव में अधिक साहस दिखाने से यौवन का लौट आना संभव नहीं, हां जोखिम उठाने का खतरा अधिक बना रहता है।
दृढ़ इच्छा शक्ति का होना प्रेरणादायक है, लेकिन यह उसकी कार्य क्षमता पर निर्भर करता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ कार्य क्षमता का हा्स होना स्वाभाविक है। इसका तात्पर्य निराशा नहीं है और ना ही मनुष्य की पौरूषता, महानता को कम तर आंकना है। अर्थ स्पष्ट है, स्वयं को सत्यता के आईने में निहारिये और अपनी कार्य क्षमता एवं बुद्धि बल का आंकलन करके कार्य को कीजिए। बहुधा देखने सुनने को मिलता है कि घर में फर्श पर पानी गिरा था, फिसल कर गिर गये। उपर से कुछ सामान उतार रहे थे, शारीरिक संतुलन खो बैठे और गिर गये। कुछ भारी सामान उठा रहे थे कि पीठ में दर्द हो गया। हड़बड़ाहट में कोई काम किया, चोट खा बैठे। बाजार जा रहे थे, ध्यान कहीं और था, किसी गाड़ी से टकरा गये। ऐसी बहुत सी धटनाऐं है जिनकी पुनरावृत्ति बार- बार हमारे जीवन में होती है लेकिन फिर भी उन्हें हम गम्भीरता से नहीं लेते। हम जानते हैं कि उम्र की इस दहलीज पर शायद ऐसी घटना, दुर्घटना में बदल सकती है। हमें जीवन पर्यन्त अपंग बना सकती है, हमारी मृत्यु का कारण बन सकती है।
यह सत्य ही नहीं सारगर्भित है कि अच्छे स्वास्थ्य में ही सुखमय जीवन जीने की अनुभूति होती है। इसके लिए आवश्यक है नियमित दिनचर्या और संतुलित आहार। प्रातः काल उठना, मार्निंग वॉक करना, योगा करना, लोगों से मिलना, स्वयं को व्यस्त रखना इत्यादि आपकी दिनचर्या में होना आवश्यक है। आहार में अत्यधिक खाने अथवा गरिष्ठ भोजन की तुलना में पौष्टिक आहार का सेवन करें।
60 वर्ष के उपरांत यह नितांत आवश्यक है। गम्भीर रोगों से पीड़ित व्यक्ति समय समय पर हैल्थ चैक अप करवायें, बराबर अपने डॉक्टर के सम्पर्क में रहे। दवाईयां समय पर लें। दृढ़ इच्छा शक्ति से किसी भी बीमारी को हराया जा सकता है। जीवन और मृत्यु का निर्धारण ईश्वर करता है। सुख और दुख हमारे कर्मों के फल है। दूसरों को दोष देना व्यर्थ है।
सोचिये, हमारे पास बल नहीं तो क्या हुआ। दीर्घ काल का अनुभव तो है। कार्य करने की क्षमता बेशक कम है लेकिन कार्य को पूरा करने की योग्यता तो है।
हम अधिक भागदौड़ नहीं कर सकते, लेकिन एक उर्जा वान मस्तिष्क तो है। शरीर ही तो बूढ़ा हुआ है, मन तो नहीं। आंखों की रोशनी धूमिल हुई है, आशा की ज्योति तो नहीं। इसलिए जीवन में निराशा से मन को भ्रमित मत कीजिए। मानसिक ऊर्जा का संचार कीजिए और शेष जीवन का आनन्द लीजिए।
लेखक
महेंद्र कुमार रस्तौगी
अध्यक्ष, वरिष्ठ नागरिक सेवा समिति कंकरखेड़ा, मेरठ
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