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Thursday, November 6, 2025

वर्तमान पर ध्यान देने वालों का भविष्य उज्ज्वल है: प्रोफ़ेसर मजीद बेदार


सीसीएस विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में "तहज़ीब-उल-अख़लाक़ पत्रिका का समकालीन अर्थ" विषय पर ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन

नित्य संदेश ब्यूरो 
मेरठ। वर्तमान पर ध्यान देने वालों का भविष्य उज्ज्वल है। सर सैयद ने कोई पत्रिका नहीं निकाली, बल्कि मनुष्य के लिए जीवन जीने का एक तरीक़ा ईजाद किया। उर्दू में खोजपरक लेखन की शुरुआत सबसे पहले तहज़ीब-उल-अख़लाक़ से हुई। इस पत्रिका के माध्यम से सर सैयद ने जो सबसे महत्वपूर्ण काम किया, वह यह था कि उन्होंने ऐसी संभावनाओं की खोज की जो मानव जीवन और समाज को बेहतर बनाती हैं। ये शब्द प्रसिद्ध शोधकर्ता और आलोचक प्रोफेसर मजीद बेदार के थे, जो आयुसा और उर्दू विभाग द्वारा आयोजित 'तहजीब-उल-अखलाक की पत्रिका के समकालीन अर्थ' विषय पर मुख्य अतिथि के रूप में अपना वक्तव्य दे रहे थे। 

उन्होंने आगे कहा कि यह पत्रिका 1870 में शुरू हुई थी और तीन बार बंद हुई थी। सर सैयद के लेखन और तहजीब-उल-अखलाक एक स्वाभाविक पीढ़ी की शुरुआत है। सर सैयद की तहजीब-उल-अखलाक ने उर्दू शैली को प्रतिष्ठा दी। सर सैयद राजनीति से दूर थे लेकिन अंग्रेजों के करीब थे और उन्होंने अपने फायदे के लिए उनसे कई रचनाएँ भी लीं। सर सैयद के लेखन में एक स्वाभाविक शैली है। इससे पहले, कार्यक्रम की शुरुआत सईद अहमद सहारनपुरी द्वारा पवित्र कुरान के पाठ से हुई। अध्यक्षता प्रोफेसर सगीर अफ़राहीम ने की। प्रोफेसर मजीद बेदार [पूर्व अध्यक्ष उर्दू विभाग, उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद] और प्रोफेसर फारूक बख्शी [पूर्व अध्यक्ष उर्दू विभाग, मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद] मुख्य अतिथिगण के रूप में शामिल हुए। लखनऊ से आफाक अहमद खान और आयुसा की अध्यक्षा प्रोफेसर रेशमा परवीन वक्ता के रूप में उपस्थित थे। जबकि इलमा नसीब (रिसर्च स्कॉलर, उर्दू विभाग, सीसीएस विश्वविद्यालय) और उज़मा मेहंदी, मुज़फ़्फ़रनगर ने शोधवक्ता के रूप में भाग लिया। स्वागत और परिचय डॉ इरशाद स्यानवी ने, संचालन शाह-ए-ज़मन ने और आसिया मैमूना ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

इस अवसर पर प्रसिद्ध लेखक और आलोचक प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी ने कहा कि “तहज़ीब-उल-अख़लाक़” पत्रिका ने अपने लेखों के माध्यम से हमें कुछ नया और बड़ा करने के लिए आमंत्रित किया इसमें गंभीर शोध और आलोचनात्मक लेख प्रकाशित होते हैं। आफाक अहमद खान ने कहा कि अगर हम आज देखें तो पाएंगे कि समाज आज भी जटिल परिस्थितियों से घिरा हुआ है। सर सैयद की विचारधारा जैसी पत्रिकाएँ आज बहुत कम सामने आई हैं, लेकिन सर सैयद के विचारों और आधुनिक शिक्षा को लोकप्रिय बनाने में "तहज़ीब-उल-अखलाक" पत्रिका का बहुत महत्व है। सर सैयद ने संस्कृति और नैतिकता को एक साथ प्रस्तुत किया। "तहज़ीब-उल-अखलाक" पत्रिका ने राष्ट्रीय एकता, संस्कृति, आधुनिक शिक्षा और सामाजिक बुराइयों को रोकने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज का युग विज्ञान और प्रौद्योगिकी का युग है, जिसकी शिक्षा सर सैयद ने बहुत पहले दी थी।

प्रोफ़ेसर फ़ारूक़ बख्शी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सर सैयद अहमद खान साहित्य जगत में एक ऐसी शख़्सियत हैं जिनके बारे में सैकड़ों किताबें सामने आ चुकी हैं। सर सैयद के व्यक्तित्व को समझने के लिए उन परिस्थितियों और परिवेश को समझना ज़रूरी है जो अहमदिया उपदेशों के रूप में हैं। सर सैयद ने अपने लिए एक ऐसा रास्ता चुना जिस पर उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। तहज़ीब-उल-अख़लाक़ के माध्यम से ऐसे लेख सामने आए जो नैतिकता, शिक्षा, विज्ञान और जनहित के मुद्दों को प्रस्तुत करते थे।आयुसा की अध्यक्षा प्रोफ़ेसर रेशमा परवीन ने कहा कि सर सैयद ने "तहज़ीब-उल-अख़लाक़" के माध्यम से छात्रों को सभी नैतिक मूल्यों से अवगत कराया। तहज़ीब-उल-अख़लाक़ के रूप में हमारे पास एक ऐसा ख़ज़ाना है जिससे छात्र बहुत लाभ उठा सकते हैं। तहज़ीब-उल-अख़लाक़ आज भी एक महान समकालीन स्थान रखता है।

अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रोफ़ेसर सगीर अफ़राहीम ने कहा कि "तहज़ीब-उल-अख़लाक़" शोधार्थियों के लिए बहुत उपयोगी है। यह पत्रिका आज भी बड़ी प्रतिबद्धता के साथ प्रकाशित हो रही है। यह पत्रिका समय की आवश्यकता को ध्यान में रखकर प्रकाशित की गई थी। सर सैयद ने देखा कि औपनिवेशिक व्यवस्था ने हम पर अत्याचार किया है, अब हम कैसे प्रगति करेंगे? मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने कहा था कि मैं सर सैयद की हर बात मानता हूँ। लंदन से आने के बाद सर सैयद ने तहज़ीब-उल-अख़लाक़ प्रकाशित की। पाँच साल बाद, एक मदरसा बना और उसके काफ़ी समय बाद एक विश्वविद्यालय बना। 

सर सैयद देश की नब्ज़ पहचानते थे। तहज़ीब-उल-अख़लाक़ हमें हमारी सभी समस्याओं और हालात से अवगत कराता है। सर सैयद अहमद ख़ान इस पत्रिका के ज़रिए देश में जागरूकता लाना चाहते थे। अगर आप तहज़ीब-उल-अख़लाक़ पत्रिका नहीं पढ़ते, तो कम से कम इसे ख़रीदकर किसी को तोहफ़े में ज़रूर दें। डॉ. आसिफ अली, डॉ. शादाब अलीम, फ़रहत अख़्तर, मुहम्मद शमशाद और अन्य छात्र इस कार्यक्रम से जुड़े।

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