नित्य संदेश।
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चल रही है बयार मोहब्बत की,
इनायत या आयात मोहब्बत की।
दिल है मैयक़दा, नज़र है प्याली,
चढ़ गई है बादा कश उल्फ़त की।
आपका साथ, साथ है यादों का,
आपकी बात, बात है चाहत की।
चैन से हम भी सोते थे, लेकिन,
लुट गई नींद रात-ओ-राहत की।
हाथ छूने को ये दिल तरसता है,
इक झलक ही बस क़िस्मत की।
वो जो आया, जगमगाहट आई,
दूर रहने से मौत ज़ुल्मत की।
मुद्दतें बीत गईं सिर्फ हैं तन्हाई,
एक तस्वीर उसकी रंगत की।
ये संजोई हुई ग़ज़ल 'स्वप्निल',
जैसे सहारा बनी रहमत की।
सपना सी.पी. साहू 'स्वप्निल'
इंदौर, MP
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