नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। 6 मुहर्रम को शहर के सभी इमामबाड़ों में इमाम हुसैन (अ.स.) की याद में मजलिस, मातम व जुलूस का सिलसिला छठे दिन भी जारी रहा। लाला बाजार स्थित इमामबारगाह छोटी कर्बला में अशरे को खिताब करते हुए मौलाना सैयद अब्बास बाकरी साहब ने "उस्वा ए हुसैनी " शीर्षक से मजलिस को संबोधित करते हुए कहा कि " इस्लाम सिर्फ इल्म ही नहीं , बल्कि इल्म के साथ अमल की अहमियत पर जोर देता है। इसीलिए अल्लाह तआला ने मुसलमानों की रहनुमाई के लिए न सिर्फ कुरान नाजिल किया, बल्कि पैग़म्बर मौहम्मद साहब की शख्सियत को मुसलमानों के लिए एक अमली नमूना बनाया, ताकि कौम पैग़म्बर मौहम्मद साहब से अमल का तरीका सीख सके। कुरान में पैग़म्बर मौहम्मद साहब की वाणी और किरदार को पूरी तरह से खुदा की मर्जी के मुताबिक बताया गया है। अपने बयान को जारी रखते हुए मौलाना बाक़री ने कर्बला के नौजवान शहजादे हज़रत अली अकबर (अ.स.) का जिक्र किया और कहा कि वह अपनी वाणी, व्यवहार, किरदार और सूरत में अल्लाह के रसूल मौहम्मद साहब में पूरी तरह से मिलते थे। इसीलिए जब उन्हें कर्बला के मैदान में भेजा गया तो इमाम हुसैन (अ.स.) ने आसमान की तरफ रुख करके कहाः "ऐ अल्लाह गवाह रहना , मैं एक ऐसे नौजवान को युद्ध में भेज रहा हूँ जो रूप, चरित्र और वाणी में तेरे प्यारे मौहम्मद (स.अ.) से सबसे अधिक मिलता-जुलता है। जब हम तेरे नबी (स.अ.) के दर्शन करना चाहते थे, तो अली अकबर (अ.स.) के चेहरे को देख लिया करते थे।"
मौलाना ने कहा कि यह अफ़सोस की बात है कि यज़ीद की सेना में वे बदकिस्मत लोग भी शामिल थे जिन्होंने नबी (स.अ.) को अपनी आँखों से देखा था, फिर भी उन्होंनें अली अकबर (अ.स.) जैसे जवान पर दया नहीं की । मजलिस का सबसे हृदय विदारक क्षण वह था जब मौलाना ने हज़रत अली अकबर (अ.स.) की शहादत का बयान किया। श्रोताओं की आँखों में आँसू भर आए और सिसकियाँ और आहें फज़ा में गूँजने लगीं। मौलाना ने कहा: "ईश्वर किसी दुश्मन को वह दुख न दिखाए जो कर्बला में हुसैन (अ.स.) ने देखे थे।" भाले ( नेज़े ) के छाती में भुक जाने के कारण हज़रत अली अकबर ( अ.स) घोड़े से ज़मीन पर गिर पड़े और बोले : 'बाबा जान , मेरा आखरी सलाम कुबूल कीजिए।' इमाम हुसैन (अ.स.) गिरते पड़ते जवान बेटे अली अकबर के पास पहुंचे तो देखा कि अठारह साल का नौजवान जख़्मी हालत में एड़ियाँ रगड़ रहा था। इमाम घुटनों के बल जमीन पर बैठ गए, जब उन्होंने भाले की नोक निकालने की कोशिश की तो अली अकबर का कलेजा भी बाहर आ गया और सीने से खून बहने लगा। जवान बेटे ने अपने बाप की गोद में ही दम तोड़ दिया।मजलिस में उपस्थित सोगवार सीना और सर पीटते हुए रोये और फज़ा "या अली अकबर" और "या हुसैन" के नारों से गूंज उठी । मजलिस में सोज़ ख्वानी सैय्यद रजी उल-हसनैन और बिरादरान नें की।
नमाज ज़ौहरैन के बाद, मौलाना शब्बर हुसैन खाँ ने अज़ा खाना शाह - ए - कर्बला वक्फ मंसबिया में अपने शीर्षक "फज़ल - ए - ईलाही और हिदायत की जिम्मेदारी" के तहत मजलिस को संबोधित किया। मौलाना ने इमाम हुसैन के जवान बेटे हज़रत अली अकबर की शहादत का बयान किया, जो पवित्र पैगंबर (स.अ) की छवि थे, जिसे सुनकर मजलिस में उपस्थित अज़ादार खूब रोये। मजलिस में सोज़ ख्वानी अमल अब्बास ने की।मजलिस में बड़ी संख्या में मोमिनीन शामिल हुए और हज़रत फातिमा को हज़रत अली अकबर का पुरसा दिया गया। शहर के अन्य इमामबाड़ों में निर्धारित समय पर मजलिसों और मातम का सिलसिला जारी रहा।
मुहर्रम कमेटी की मीडिया प्रभारी डॉ. इफ्फत जकिया ने बताया, " मनसबिया की मजलिस के बाद थाना कोतवाली स्थित पेड़ामल बाजार की इमामबारगाह तकी हुसैन से जुलूस ए जुल्जनाह बरामद हुआ जो खंदक बाजार से होता हुआ जाहिदियान की इमामबारगाहों में पहुंचा। वहां से सत्यम पैलेस रोड से होता हुआ खैरनगर स्टेट बैंक की इमामबारगाह पहुंचा उसके बाद छत्ता बुर्जियान के इमामबारगाह से गुजरता हुआ लाला बाजार स्थित इमामबारगाह छोटी कर्बला पहुंचा। वहां पर शहर की सभी मातमी अंजुमनों ने नौहा ख्वानी और मातम किया। इसके बाद जुलूस अख्तर मस्जिद से होता हुआ अहमद रोड और खैरनगर से गुजर कर इमामबारगाह तकी हुसैन वापस आकर समाप्त हुआ। जुलूस के संयोजक अफसर काजमी थे। जुलूस में शहर की तमाम मातमी अंजुमनों ने नौहे पढ़े और मातम किया।
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