Breaking

Your Ads Here

Sunday, July 6, 2025

संख्याबद्ध सांख्यदर्शन आधुनिक युग के डिजिटल का मूलरूप: प्रो. त्रिपाठी

 



नित्य संदेश ब्यूरो

मेरठ। प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी के आवास पर भागवत में व्रतकथा का प्रारम्भ हुआ। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि मानस सृष्टि के प्रजापति कर्दम ने अपनी पत्नी मनुपुत्री मानवी देवहूति को व्रतचर्या सिखाई


श्री त्रिपाठी ने बताया कि वन में कन्दमूल फल खाना, तिथियों पर व्रत करना आदि, जिससे उनका स्थूल शरीर क्षाम हो गया। यह व्रत का भौतिक फल हुआ। उनके पुत्र कपिल ने सांख्यदर्शन का उपदेश दिया। संख्याबद्ध सांख्यदर्शन आधुनिक युग के डिजिटल का मूलरूप है। कर्दम ने अपनी नौ पुत्रियों में से एक क्रिया को ऋषि क्रतु को प्रदान किया। क्रिया और क्रतु का यह योग महत्त्वपूर्ण है। क्रतु का अर्थ है संकल्प और क्रिया का अर्थ है जुट जाना। व्रत में 5 तत्त्व हैं ,संकल्प, आरम्भ, क्रिया, इष्ट और पारणा। इसका सबसे सुन्दर उदाहरण है अम्बरीष की द्वादशीव्रतकथा। सबसे महत्त्व की बात कि व्रत करने वाले की सुरक्षा का दायित्व इष्ट पर आ जाता है।


व्रत शब्द व्रज् धातु से बना है, जिसके तीन अर्थ हैं बाड़ा, गति और शोषण। अर्थात् संकल्प को गति दो, सुरक्षा का बाड़ा बनाओ, आहार निद्रा भय और मैथुन के पशुधर्म का नियन्त्रण करना चाहिए। व्रत के समय किसी अन्य कर्म को न करे और कर्म और निर्हार को यज्ञ और यष्टव्य को अलग-अलग कर के देखे। रविवार को अम्बरीष, प्रियव्रत, उत्तानपाद, ध्रुव, ऋषभदेव और भरत की कथाएं हुईं। व्रतविधि को बताया कि सोमवार की कथा में पुंसवन व्रत की चर्चा होगी। यह व्रत क्यों, कैसे, किसके लिए किया जाता है?

No comments:

Post a Comment

Your Ads Here

Your Ads Here