नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। शहीद मंगल पाण्डे राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय माधवपुरम एवं न्यूक्लियस ऑफ़ लर्निंग एंड डेवलपमेंट के संयुक्त तत्वाधान में ऑनलाइन आयोजन किया गया। “भारतीय ज्ञान प्रणालियाँ: मार्ग और प्रक्षेप पथ “ विषयक दस दिवसीय सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम के अंतिम दिवस विशेषज्ञ वक्ता के रूप में प्रोफेसर सारदा थल्लम (अंग्रेजी विभाग, श्री वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, तिरूपति) से उपस्थित रहीं, जिनके द्वारा, "भक्ति, महिला कवयित्रियाँ और उनकी काव्यकला" विषय के ऊपर अपना विश्लेषण प्रस्तुत किया गया।
कार्यक्रम की शुरुआत में न्यूक्लियस ऑफ़ लर्निंग एंड डेवलपमेंट संस्थान की ओर से डॉ. निधि सेनदुर्निकर एवं डॉ विकास राजपूत ने कार्यक्रम की संक्षिप्त रूपरेखा, उद्देश्य व लक्ष्य समस्त के साथ साझा किये। कार्यक्रम संयोजक प्रो. लता कुमार ने मुख्य वक्ता आयोजन से जुड़े, सभी अधिकारियों और प्रतिभागियों का स्वागत किया। तत्पश्चात आज के सत्र् की मुख्य वक्ता प्रोफेसर सारदा थल्लम ने अपने गहन और प्रभावशाली व्याख्यान में ने अपने व्याख्यान में भक्ति आंदोलन का उल्लेख करते हुए बताया कि यह अभूतपूर्व और विलक्षण था। भारत के लिए अद्वितीय उत्थान का समय था। भक्ति आंदोलन "असंगठित", फिर भी "संगठित" था ।इसका समय: एक सहस्राब्दी से अधिक - 6वीं ई.पू. से उपनिवेशवाद से कुछ पहले तक रहा। आपने एक द्रविड़ देशी महिला अम्माई का उल्लेख करते उनके काव्य की विशेषताएं वर्णित की। अक्का महादेवी 12वीं शताब्दी की एक प्रसिद्ध कन्नड़ कवयित्री और संत थीं, जो भक्ति आंदोलन में सक्रिय थीं।
उन्होंने सामाजिक मानदंडों और लैंगिक अपेक्षाओं के खिलाफ विद्रोह किया और भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति व्यक्त की। इनके काव्य का सरदा गांव (लाल देद और कश्मीर शैव) पर भी प्रभाव पड़ा। l मुख्य वक्ता ने बताया कि भारतीय ज्ञान प्रणाली एक प्राचीन और समृद्ध ज्ञान परंपरा है, जो अतीत, वर्तमान और भविष्य को आकार देती है। यह प्रणाली विभिन्न विषयों में ज्ञान प्रदान करती है, जैसे कि दर्शन, विज्ञान, कला, और संस्कृति।भारतीय ज्ञान प्रणाली विविध और समृद्ध है, जिसमें विभिन्न विषयों और शाखाओं का समावेश है।
इसके मूल स्रोत वेद, उपनिषद, और अन्य प्राचीन ग्रंथों में पाए जाते हैं।भारतीय ज्ञान प्रणाली आध्यात्मिक और दार्शनिक है, जो जीवन के अर्थ और उद्देश्य को समझने के लिए विभिन्न दृष्टिकोण प्रदान करती है। आपने भक्ति काव्य और तमिल भूमि का उल्लेख करते हुए बताया कि भक्ति आंदोलन की शुरुआत इसी धरती से हुई। भक्ति ग्रंथ: उस समय के धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक पहलुओं का दस्तावेजीकरण करने वाले आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अभिलेख हैं। इनका उद्देश्य परंपरा को कायम रखना और जारी रखना था।
आपने अलवर और नयनार, दक्षिण भारत में 5वीं से 10वीं शताब्दी के दौरान भक्ति आंदोलन के दो प्रमुख समूह थे. अलवर भगवान विष्णु के भक्त थे, जबकि नयनार भगवान शिव के भक्त थे. दोनों ही समूहों ने ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति के माध्यम से मुक्ति का मार्ग बताया. आंडाल, एक महिला अलवार भक्ति संत थीं। दक्षिण भारत के 12 आलवार संतों में आंडाल एकमात्र महिला अलवार थीं। व्याख्यान के अंतिम चरण में प्रतिभागियों द्वारा मुख्य वक्ता के साथ विचार विमर्श किया गया । अंतिम दिवस में प्रतिभागियों ने अपने अनुभव और विचार साझा किए । कार्यक्रम की सह-समन्वयक डा. निधि सेनदुर्निकर ने समापन वक्तव्य और विश्लेषण प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम संयोजक प्रो. लता कुमार ने दस दिवसों के व्याख्यानों की संक्षिप्त आख्या प्रस्तुत की तथा सभी आयोजकों, प्रतिभागियों, अतिथियों और वक्ताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया। उक्त कार्यक्रम के आयोजन में महाविद्यालय आयोजन समिति के सदस्य प्रोफेसर भारती दीक्षित, प्रो. अनुजा रानी गर्ग, प्रो मंजू रानी, प्रोफेसर गीता चौधरी, डॉ. आर. सी. सिंह, डॉ भारती शर्मा, डॉ. पूनम भंडारी, डॉ. नितिन चौधरी और मनीषा भूषण का विशेष योगदान रहा ।
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