Breaking

Your Ads Here

Sunday, June 22, 2025

भागवत धर्म है तीर्थसेवा, तीर्थ वह जहाँ कोई भय न हो: प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी

नित्य संदेश ब्यूरो 
मेरठ। मयूर विहार में अपने आवास पर प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी ने यदुकुल की समाप्ति से कथा प्रारम्भ की। कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न, प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध, अनिरुद्ध के पुत्र वज्र का उल्लेख किया। वज्र को उद्धव ने अर्जुन को सौंपा और वह कौशाम्बी का शासक हुआ।

निमि और नौ आर्षभ अवधूतों की कथा हुई। ये नौ वैदिक ऋषि हुए हैं, जिनके नाम से सूक्त मिलते हैं। निमि ने उनसे भागवत धर्म के लक्षण को पूछा। भागवत धर्म के लक्षण ही तीर्थ के लक्षण हैं। भागवत धर्म है तीर्थसेवा। ऋषि कवि ने बताया, तीर्थ वह जहाँ कोई भय न हो। भागवत व्यक्ति कौन? हरि ने बताया, जो सभी में भगवान् को देखे, वह भागवत। जो चरणकमलों में रत हो, विश्वात्मा हो, अनुद्विग्न बुद्धि हो। माया कौन? अन्तरिक्ष ने बताया, अहंकार, बुद्धि, मन माया का स्वरूप। 

माया को पार करने का मार्ग क्या? प्रबुद्ध ने बताया, कर्म प्रारम्भ करते समय फल की कामना नहीं करें। नारायण ने बताया, अनन्त का गुणगान करना ही जीवन का रहस्य।
यदु और खट्वांग अवधूत के प्रसंग में चौबीस व्यावहारिक गुरुओं का वर्णन हुआ। ये भी तीर्थस्वरूप हैं। मार्कण्डेय ऋषि की कथा सिखाती है कि ईश्वर से कुछ माँगना नहीं चाहिए। तप निष्फल हो जाता है।

त्रिपाठी जी ने कलियुग के दोषों से बचाव के उपाय बताए । सत्य, दया, तप और दान ये सभी भव सागर से पार लगाने वाले तीर्थ हैं। कृतयुग में सत्य, त्रेता में दया, द्वापर में तप और कलियुग में दान तीर्थ है। इस प्रकार तीर्थ के नौ लक्षणों का विस्तृत वर्णन के साथ भागवती तीर्थकथा का समापन हुआ।

No comments:

Post a Comment

Your Ads Here

Your Ads Here