नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। अभयमन्त्र के विवेचन के साथ प्रारम्भ कथा में शुक्रवार को प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी ने बताया, कृष्ण एक साधनप्रधान सिद्ध ऋषि थे।
कथा में श्रीकृष्ण के भगवद्रूप के स्थान पर ऋषिरूप की चर्चा हुई। शमल के रहस्य को समझाया। जो ऋषि साधन को छोड़कर साध्यप्रधान हो गए, वो दानव बन गए। उन्हीं 27 ऋषियों का उद्धार श्रीकृष्ण द्वारा हुआ। पूतना से लेकर मुर तक 27 दानव ज्योतिष के 27 नक्षत्रों के प्रतीक हैं, जो जीवन के जन्म से लेकर मृत्यु तक की सभी घटनाओं के द्योतक होते हैं। कृष्ण का संस्कार कराने वाले गर्ग ऋषि की कथा हुई, जिन्होंने गर्ग संहिता की रचना की। ऋषि अपना कार्य अपने कार्यक्रम से करता है। इन दानवों के ऋषित्व का प्रमाण इसी बात में है कि वह कृष्ण में ही समाहित हो गए।
भगवान के प्रति लगाव किसी भी भाव से हो- भक्ति, प्रेम या वैर से, यदि भगवान् केन्द्र में हो तो वही साधक ऋषि हो जाता
है। ऋषि सन्दीपनि के पुत्र को लाने, पाञ्चजन्य शंख की प्राप्ति की तथा रुक्मिणी के साथ
विवाह की कथा हुई। शनिवार को सोलह
हजार रानियों के साथ विवाह, नारद द्वारा दर्शन, सुदामा का आगमन, देवताओं की प्रार्थना के साथ साम्ब की कथा होगी।
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