नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। मयूर विहार में अपने आवास पर प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी
ने गुरुवार की कथा को असुर त्रिपुर की कथा से प्रारम्भ किया, जिसने लोहे, चाँदी और सोने के तीन नगर बनवाए थे।
भगवान् शिव ने देवताओं का रथ बनाकर चन्द्र और सूर्य पर पैर रखकर एक ही शर से त्रिपुर का विध्वंस किया। उसी वंश में विरोचन हुए। समुद्रमन्थन हुआ। अदिति ने कश्यप से सन्तान हेतु प्रार्थना की। कश्यप ने पयोव्रत विधान बताया, फलस्वरूप वामन का अवतार हुआ। अगले कल्प में सत्यव्रत श्राद्धदेव को शफरी की प्राप्ति हुई। इससे कृतमालानदी तीर्थ बना। दक्षिण भारत में यह नदी माला के रूप में घूमकर प्रपात बनाती है। चौथे मन्वन्तर में इक्ष्वाकु वंश के मान्धाता और युवनाश्व आदि प्रतापी राजा हुए और प्रतिष्ठानपुर (प्रयाग) तीर्थ हुआ।
सौभरि ऋषि से सौभरि तीर्थ बना, जो गङ्गायमुना के संगम पर स्थित था। नागकन्या नर्मदा और पुरुकुत्स की कथा में सर्प और वृश्चिक आदि के विषनिवारण
मन्त्र का उल्लेख हुआ। अयोध्या तीर्थ इसलिए बना, क्योंकि
अधिकारी पुत्र राम ने पिता की आज्ञा मात्र से राज्य का परित्याग कर दिया। प्रयाग, जनकपुर (नेपाल), समन्तपञ्चक, मधुरा (मथुरा / मदुरै) आदि
तीर्थों का वर्णन हुआ। शुक्रवार की कथा में वृन्दावन, कालियदह, गोवर्धन, मधुवन, उज्जैन, मुचुकुन्द गुफा (कन्हेरी केव्स), विदर्भ आदि तीर्थों की कथा होगी।
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