नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। अगर साहित्य की बात करें तो हमारा उर्दू साहित्य भी एक अलौकिक, कथात्मक परिवेश से उभरा है। यद्यपि कथाएं आज भी लिखी जा रही हैं, लेकिन समय के साथ उनकी शैली और स्वरूप में परिवर्तन आया है। आज के पर्यावरण और प्रौद्योगिकी के कारण काफी बदलाव आया है। अतीत में मौलिक बुद्धिमत्ता को बहुत महत्व दिया जाता था, लेकिन आज कृत्रिम बुद्धिमत्ता हर कदम पर मौजूद है। ये शब्द प्रोफेसर सगीर अफ्राहीम के थे, जो आयुसा और उर्दू विभाग द्वारा आयोजित साहित्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की उपयोगिता विषय पर अपना अध्यक्षीय भाषण दे रहे थे।
उन्होंने आगे कहा कि आज हम जिस युग में प्रवेश कर चुके हैं, उसमें एक बच्चा भी विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम
से भावनाओं और संवेदनाओं को अच्छी तरह महसूस कर सकता है। इसलिए साहित्य में
कृत्रिम बुद्धिमत्ता के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। कार्यक्रम की शुरुआत सईद अहमद सहारनपुरी ने पवित्र कुरान की तिलावत से हुई। प्रो.
सुभाष थलेड़ी [अध्यक्ष, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, सुभारती विश्वविद्यालय] ने मुख्य अतिथि के रूप में, राजेश भारती [निदेशक, आमात्य ग्रुप आईएएस कोचिंग] ने मुख्य वक्ता और डॉ. विद्यासागर
[हिंदी विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय]
ने विशेष वक्ता के रूप में ऑनलाइन भाग लिया। कार्यक्रम में लखनऊ से आयुसा की
अध्यक्ष प्रो. रेशमा परवीन मौजूद रहीं। स्वागत भाषण फरहत अख्तर ने दिया, अतिथियों का परिचय डॉ. आसिफ अली ने कराया तथा संचालन
डॉ. अलका वशिष्ठ ने किया। कार्यक्रम से डॉ. शादाब अलीम, डॉ. इरशाद स्यानवी, मुहम्मद शमशाद एवं छात्र-छात्राएं जुड़े रहे।
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