'मुहावरों की मिठास और लोकोक्तियों का लालित्य' पर वामा साहित्य मंच का आयोजन
सपना साहू
नित्य संदेश, इंदौर। भाषा की सुंदरता और प्रभाव बढ़ाने में मुहावरे और लोकोक्ति का अहम योगदान है। वामा साहित्य मंच ने शनिवार को 'मुहावरों की मिठास और लोकोक्ति का लालित्य' विषय पर मई माह की गोष्ठी आयोजित की। प्रारंभ में मां सरस्वती वंदना डॉ. सुषमा शर्मा श्रुति ने प्रस्तुत की। अध्यक्ष ज्योति जैन ने स्वागत उद्बोधन भी मुहावरेदार भाषा में दिया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में साहित्यकार-भाषाविद डॉ.पद्मा सिंह शामिल हुई। उन्होंने कहा कि मुहावरे और लोकोक्ति का प्रयोग भाषा की प्रभावशीलता, आकर्षण व रोचकता को बढ़ाता है। यह शब्दों में संक्षिप्तता और भावों में तीव्रता लाते हैं, जिससे रचना पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह भावों की अभिव्यक्ति को अधिक सशक्त करते हैं।मुहावरे और लोकोक्तियाँ लोक से जन्मती हैं, ये हमारी सांस्कृतिक पहचान को दर्शाते हैं। यह विशिष्ट समाज की सांस्कृतिक विरासत हैं। इनका प्रयोग भाषा को लोकजीवन से जोड़ता है और परंपराओं का भी संरक्षण करता है। इनके प्रयोग से रचना में प्रतीकात्मकता और व्यंजनात्मकता आती है। लेखन अधिक कलात्मक, रसात्मक, विचारोत्तेजक व सौंदर्यपूर्ण हो जाता हैं। इनके उचित प्रयोग से लेखक की भाषा-दक्षता और सृजन क्षमता का परिचय मिलता है।
सदस्यों ने अलग-अलग लोकोक्ति व मुहावरों पर आधारित स्वलिखित रचना सुनाई...
बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद- विद्यावती पाराशर,
नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली-रचना चोपड़ा,
साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे- स्नेहलता श्रीवास्तव,
अंधा बांटे रेवड़ी- निरुपमा नागर,
पराधीन सपने हूं सुख नाही- अनुपमा गुप्ता,
जिसके पांव न फटी बिवाई वह क्या जाने पीर पराई- निरुपमा त्रिवेदी,
आम के आम गुठलियों के दाम- नीरजा जैन,
का बरखा जब क़ृषि सुखाने- महिमा शुक्ला,
होनहार विरवान के होत चिकने पात -अंजना सक्सेना,
मन के जीते जीत है मन के हारे हार- डाॅ.सुनीता दूबे,
घाट घाट का पानी पीना- भावना दामले,
पहले भात पीछे बात- शारदा मण्डलोई,
पराधीन सपने हूं सुख नाही- अनुपमा गुप्ता,
हाथी के दाँत खाने के और, दिखाने के और- सरला मेहता,
चौबे गए ,छब्बे होने, दुबे हो आए- सुजाता देशपांडे,
जी का जंजाल- वैजयंती दाते,
ना नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेगी- अवंति श्रीवास्तव,
काम का ना काज का दुश्मन अनाज का- कविता अर्गल,
अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना- निशा देशपांडे,
मन के हारे हार है मन के जीते जीत- आशा गुप्ता,
एक तो मियां बावले दूजे खाई भंग- संगीता जैन,
पर उपदेश कुशल बहुतेरे- प्रीति दूबे
पढ़े फारसी बेचे तेल- मंजूला चौबे,
आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास- दिव्या मंडलोई,
दाल में कुछ काला है- स्नेहा काले
जैसा जिनका नदी नाला वैसा उनका खड़का, जैसा जिनका मात-पिता ने वैसा उनका लड़का- सुषमा शर्मा श्रुति,
काँख में छोरा, गाँव में ढिंढोरा-बृ जराज कुमारी व्यास,
शाम को घर आए तो उसे भूला नहीं कहते- नुपूर प्रणय वागळे,
बगल में छोरा, गाँव में ढिंढोरा, तिल का ताड़ बनाना- हेमा रावत,
मुंह बंद ते मोटापा नई, जबान बंद ते स्यापा नई- अमर कौर चड्डा के अलावा प्रतिभा जोशी, अनिता जोशी, विभा जैन ने रचनाएं प्रस्तुत की। अतिथि स्वागत सचिव स्मृति आदित्य व पूर्णिमा भारद्वाज ने किया। सुंदर मुहावरेदार संचालन डॉ. किसलय पंचोली ने किया। आभार उषा गुप्ता ने व्यक्त किया।
No comments:
Post a Comment