नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। ये बड़े दुख का विषय है कि शहर काजी के
पद को सियासी लोगों ने अपने निजी फायदे के लिए विवादास्पद बना दिया। चुनिंदा सियासी
व कारोबारी लोगों के एक समूह ने जनाजा उठा नहीं कि मरहूम काजी साहब के साहिबजादे डा.
सालिकीन को पगडी बांधकर, गले में फूलों की माला पहनाकर मय्यत ले जाते वक़्त घंटाघर
पर माइक से शहर काजी बनाने का ऐलान कर दिया।
ये कहना है नगर निगम के पूर्व पार्षद अफजाल सैफी
का। उन्होंने कहा कि इसके तुरंत बाद कारी शफीकुर्हमान कासमी को शहर काजी बनाने का ऐलान
किया गया और सियासत शूरू हो गई। अहमियत के पद को सियासी लोगों ने अपनी नाक का सवाल
बनाकर दूसरे लोगों की नजरों में जगहसाई करा दी। यह दोनों ही शहर काजी बनने के लायक
नहीं है, बल्कि दोनों ही सियासी लोगों की कठपुतली बने हुए हैं। शहर काजी बनाने का हक
उलमाओं का है, सियासी लोगों का नहीं। रमाजान की अहमियत बयान नहीं हो रही, मस्जिदों
व मदरसों को स्वागत, इस्तकबाल का घर बना दिया है। मस्जिदों व मदरसों में फोटो सेशन
चल रहा है। भीड़ दिखाने का चलन चल रहा है। इस्लाम और कुरान की रोशनी में शहर काजी को
चुना जाए। सियासी लोगों को इस मामले से दूर रखे और इसका फैसला जुमा अलविदा से पहले
पहले करे तो अच्छा रहेगा, वरना सियासी लोग एक जाति को निशाना बनाकर फिर से जाकिर कालोनी
कांड करवाकर सियासी रोटिया सेकना चाहते हैं।
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