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Wednesday, March 12, 2025

बदलते जमाने के साथ बदल गए होली के रंग, अब ले लिया हुड़दंग का रूप

 


एक समय था जब सांस्कृतिक कार्यक्रमों के मुकाबलों के साथ महीनों तक मनाई जाती थी होली

रवि गौतम

नित्य संदेश, परीक्षितगढ़। एक जमाना था जब लोग आपसी सद्भाव व सौहर्द के साथ रंगों का त्यौहार होली मनाते थे। आज होली ने हुड़दंग का रूप ले लिया है। अब तो न होली का उल्लास रहा और न हुलियारे। अब तो होली सिर्फ हल्ले तक सिमटकर रह गई है, दिलों का प्यार खत्म हो चुका है। त्यौहारों पर दुश्मनी भी हावी हो गई है। होली के गीत डीजे के शोर में गुम हो गए। हुलियारों की जगह शराबियों की मंडलियों ले ली है, एक समय था जब होली सांस्कृतिक कार्यक्रम मुकाबले में महीनों तक मनाई जाती थी, लोग एक दूसरे को गले लगाकर होली की बधाई देते थे।

डॉ. प्रियंका सिंघल का कहना है कि होली पर्व का ऐसा मिलन है जो गरीब अमीर के बीच अंतर समाप्त कर देता है, लोग बड़े प्यार से एक दूसरे के गले मिलते थे। अब होली के पर्व का रूप बिगड़ गया है। इस पर्व से लोग एक दूसरे से बचने लगे हैं। रंग रोगन का ऐसा गलत और भद्दा प्रयोग होने लगा है। एक जमाना था जब बच्चे व बड़े बुजुर्ग होली की तैयारियों में एक सप्ताह पहले जुट जाते थे। एक अलग उत्साह व उमंग लोगों में दिखाई देती थी, लोग टेसू के फूलों के रंगों के साथ अपना प्यार एक दूसरे पर न्यौछावर करते थे। होली के पर्व पर दुश्मन से भी गले मिलकर दुश्मनी को प्यार में बदल देते थे। आज होली में होने वाले हुड़दंग के कारण लोग एक दूसरे को लहू बहाने से भी परहेज नहीं करते

ढोल नगाड़ों के साथ मनाई जाती थी होली

मीतू रानी प्रधानाध्यापिका का कहना है कि पहले होली खेलते समय नगाड़ों, ढोल बजाकर लोग होली के गीत गाते थे, प्रत्येक गांव के बीच ढोल बजाने की प्रतियोगिता होती थी, जो सप्ताह भर चलती थी। प्रतियोगिता में हाथी व घोड़े को भी नचाया जाता था, लेकिन समय के साथ-साथ सब छूटता जा रहा है। डीजे का प्रयोग कर हुडदंग मचाया जा रहा है, जिससे माहौल खराब होने की आशंका बनी रहती है।

तैयार की जाती थी भांग

डॉ. सरित तोमर कहती है कि होली के पर्व पर हुलियारों के लिए भांग घोटी जाती थी। मेवा, मगज डालकर दूधिया व राई का पानी बनाया जाता था, जिसका सेवन बुजुर्ग नहीं युवा भी करते थे। आज होली में नशे के लिए शराब का सेवन करने लगे है, जो स्वास्थ्य के लिए भी जानलेवा है।

ढोल, ताशों के साथ खुशी के लोक गीत गाए जाते थे

चेयरमैन हिटलर त्यागी बताते है कि पहले हम होली लेकर शोक उठाने के लिए घर घर जाते थे और होली बजाकर शोक दूर करते थे। होली का मतलब होता था जिस घर में मृत्यु है जाती थी तो लोग शोकग्रस्त हो जाते थे। उनका शोक दूर करने के लिए ढोल ताशों के साथ उनके घर जाकर खुशी के लोक गीत गाये जाते थे, जिसमें पुरणमल नवलदे नरसी का भात आदि किस्से सुनाए जाते थे, लेकिन आज मोबाइल के जमाने में सबकुछ छूट गया और लोग होली मनाने के लिए डीजे की धून व शराब का नशा कर होली का पर्व मना रहे।

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