नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। आज के युग में भौतिक सुखों की अंधी दौड़ ने मनुष्य को भीतर से तोड़ दिया है।
प्रतिस्पर्धा, तनाव, असफलता और अवसाद — ये शब्द अब जीवन का हिस्सा बन चुके हैं।
हर उम्र का व्यक्ति किसी न किसी मानसिक संघर्ष से गुजर रहा है।
दो महीने पहले जब मैं बिजनौर गंगा बैराज से पैदल गुजर रहा था,
तो वहां पर लगी सिर्फ 4 फीट ऊँचाई की रेलिंग देखकर मेरे मन में एक गहरा विचार आया।
मैंने सोचा — अगर कोई **मानसिक रूप से परेशान व्यक्ति** यहां से गुजरे,
और उसी समय उसके मन में आत्महत्या का विचार आ जाए,
तो उसे यहां से कूदने में कोई कठिनाई नहीं होगी।
क्षण भर में वह गंगा की धारा में विलीन हो जाएगा,
और एक और जीवन समय से पहले समाप्त हो जाएगा।
उसी क्षण मुझे यह अनुभूति हुई कि आत्महत्या कभी निर्णय नहीं होती,
वह केवल एक क्षणिक आवेग (इंपल्स) होती है।
यदि उस क्षण कोई व्यक्ति या कोई अवरोध उसे रोक दे,
तो शायद उसका जीवन बच सकता है।
पिछले कुछ महीनों में हमने कई दर्दनाक घटनाएं देखी हैं —
एक युवती, जो सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रही थी,
असफलता से दुखी होकर गंगा में कूद गई।
एक फौजी ने अपनी पत्नी के आत्मघाती कदम के बाद
अपने एक मासूम बच्चे के साथ वही रास्ता चुना।
एक व्यापारी ने भी अपने जीवन का अंत उसी स्थान पर कर लिया।
इन घटनाओं को रोकने की नैतिक जिम्मेदारी हमारी सबकी है।
इसलिए मैं प्रशासन से **भावनात्मक अपील** करता हूँ कि
**बिजनौर गंगा बैराज पर कम से कम 8 फीट ऊँचा लोहे का जाल** तत्काल लगाया जाए।
ताकि अगर किसी के मन में आत्महत्या का विचार भी आए,
तो वह उसे क्रिया में न बदल सके।
क्योंकि समय निकल जाने पर वह विचार भी समाप्त हो जाता है —
और जीवन फिर से मुस्कुराने लगता है।
🙏 आइए, हम सब मिलकर एक जीवन बचाने का प्रयास करें।
एक छोटी-सी दीवार किसी के पूरे परिवार को बिखरने से बचा सकती है।
हर जीवन अनमोल है। हर सांस उम्मीद है।
**डॉ. अनिल नौसरान**
संस्थापक – *साइक्लोमेड फिट इंडिया*
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