नित्य संदेश। भारत में चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की वर्तमान स्थिति पर गंभीर मंथन की आवश्यकता है। सरकार लगातार नए मेडिकल कॉलेज खोलने की घोषणा कर रही है, लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि पहले से स्थापित अधिकांश नए मेडिकल कॉलेज ही अनेक गंभीर समस्याओं से जूझ रहे हैं। ऐसे में आने वाले दस वर्षों तक नए मेडिकल कॉलेज खोलने की आवश्यकता नहीं है।
मुख्य समस्याएँ
1. फैकल्टी की कमी – नए मेडिकल कॉलेजों में योग्य व वरिष्ठ अध्यापकों की भारी कमी है। अनेक विभागों में पर्याप्त संकाय सदस्य उपलब्ध ही नहीं हैं।
2. कैडवर की कमी – मेडिकल शिक्षा का मूल आधार व्यावहारिक प्रशिक्षण है, जिसके लिए कैडवर (शव) की उपलब्धता अत्यावश्यक होती है। अधिकांश नए कॉलेजों में यह व्यवस्था पूरी नहीं हो पा रही है।
3. मरीज़ों की कमी – वरिष्ठ संकाय की अनुपस्थिति के कारण नए मेडिकल कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों में मरीज़ों का विश्वास नहीं बन पा रहा है। नतीजा यह है कि छात्रों को वास्तविक क्लीनिकल एक्सपोज़र नहीं मिल पा रहा।
4. गुणवत्ता पर असर – इन सब कारणों से योग्य और कुशल डॉक्टर इन कॉलेजों से निकल कर सामने नहीं आ पा रहे हैं। इसका सीधा प्रभाव समाज के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है।
डॉक्टर क्यों नहीं जुड़ रहे?
* कम वेतन और सीमित सुविधाएँ
* अत्यधिक ज़िम्मेदारियाँ लेकिन सुरक्षा का अभाव
* प्रशासनिक दबाव और अनुचित हस्तक्षेप
सरकार को चाहिए कि वह नए मेडिकल कॉलेज खोलने से पहले यह समझे कि अच्छे डॉक्टर और शिक्षक इन कॉलेजों से क्यों दूर हो रहे हैं। केवल इमारतें खड़ी कर देने से मेडिकल कॉलेज नहीं चलते, बल्कि योग्य शिक्षक, पर्याप्त संसाधन और सुरक्षित वातावरण ही मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित कर सकते हैं।
अगर इस विषय पर राष्ट्रीय स्तर पर गंभीर कदम नहीं उठाए गए तो आने वाले वर्षों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति और अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाएगी।
प्रस्तुति
डॉ. अनिल नौसरान
संस्थापक – *नेशनल यूनाइटेड फ्रंट ऑफ डॉक्टर्स*
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