-मयूर विहार में भागवत की तपप्रधान सातवें दिन की हुई कथा
नित्य संदेश ब्यूरो
मेरठ। मयूर विहार स्थित प्रो. सुधाकराचार्य त्रिपाठी के आवास पर भागवत की तपप्रधान सातवें दिन की कथा हुई। कथा में तप के बारे में वर्णन किया गया। तप परम्परा से होता है। ये ईश्वर परक है। ये प्रार्थना व पारणा पर होता है।
कथा में यदुवंश के श्राप का वर्णन हुआ, इस श्राप के रहस्य की विवेचना की गयी कि ये तपोबल के कारण होता है। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि तप करने वाले व्यक्ति को भय नहीं होता। ब्रह्मा, विष्णु, महेश व श्रीकृष्ण आदि सभी ने तप किया। निमि ने पूछा- भागवत धर्म क्या है? जो ना अपने से, ना किसी से डरे। भागवत धर्म कैसे पूरा होगा? ये सारी दुनिया भगवान का ही विराट रुप है। जो अपने भीतर ईश्वर को देखे व बाहर भी ईश्वर को ही देखे। माया क्या है? इससे कैसे बचें? जो व्यक्ति बाहर देखता है भीतर नहीं, वह बंधता है और जो इस विराट स्वरूप को अपना समझता है, वह माया से पार हो जाता है।
कहा कि स्वयं को देखना ही माया से पार पाने का उपाय है। अवधूत के चौबीस गुरुओं का वर्णन। कृष्ण भगवान का उद्धव को उपदेश। सत्संग का मार्ग ही श्रेष्ठ है। कृष्ण भगवान का स्वलोकगमन। कलियुग के राजाओं का वर्णन। सत्य, दया, तप और दान ये ही कलियुग से बचने का उपाय है। अंत में खटवांग व मार्कण्डेय ऋषि की कथा का वर्णन हुआ।
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