Breaking

Your Ads Here

Tuesday, July 8, 2025

गांव की गलियों से निकलकर, परिवार के सपनों के बल पर, एडवोकेट तन्ज़ीम अकरम ने पूरा किया लंदन की अदालतों तक का सफ़र


नित्य संदेश ब्यूरो 
नई दिल्ली। ज़हीरपुर गांव की मिट्टी में पले-बढ़े एक साधारण से लड़के ने अपनी मेहनत, समर्पण और अपने परिवार के सपनों के बल पर लंदन की अदालतों तक का सफ़र तय किया है। यह कहानी है एडवोकेट तन्ज़ीम अकरम की, जिन्होंने अपने गांव से शुरू किया गया सफ़र अब अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुँचा दिया है।

तन्ज़ीम अकरम की प्रारंभिक शिक्षा उनके पैतृक गांव ज़हीरपुर के एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय में हुई। इसके बाद कक्षा 8वीं से 12वीं तक की पढ़ाई उन्होंने पुरकाज़ी के प्रतिष्ठित लाला शुकलाल सनातन धर्म इंटर कॉलेज से पूरी की। शिक्षा के प्रति उनकी लगन और परिवार की प्रेरणा उन्हें मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय रामपुर तक ले गई, जहाँ से उन्होंने BA LLB (कानून) की पढ़ाई पूरी की। कानूनी शिक्षा के बाद तन्ज़ीम ने एक वर्ष तक UPSC की भी तैयारी की, लेकिन उनके पिता स्वर्गीय मोहम्मद अकरम नेताजी का सपना था कि बेटा समाज की सेवा एक सच्चे वकील के रूप में करे। उसी सपने को साकार करने के लिए तन्ज़ीम अकरम ने दिल्ली उच्च न्यायालय और फिर सुप्रीम कोर्ट में दो वर्षों तक वकालत की। इसके बाद लंदन जाकर उन्होंने बार ऐट लॉ और मास्टर्स ऑफ laws की पढ़ाई पूरी की।
वालिद साहब की विरासत

स्वर्गीय मोहम्मद अकरम नेताजी सिर्फ़ एक पिता नहीं थे, बल्कि एक प्रेरणा स्रोत थे। वे ज़हीरपुर गांव और आसपास के क्षेत्रों में सामाजिक न्याय, शिक्षा और मूलभूत अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले एक सक्रिय और प्रतिबद्ध व्यक्ति रहे। उन्होंने तन्ज़ीम अकरम को हमेशा सिखाया कि "बेटा, दौलत के पीछे मत भागना, मैंने तुम्हें देश और खिदमत-ए-खल्क (मानव सेवा) के लिए वक्फ किया है।"

वह खुद भी पहले तंजीम अकरम की तरह सामाजिक सरोकारों और अधिकारों को लेकर ज़मीन पर कार्यरत रहे। उन्होंने क्षेत्र में कई बार गरीबों, मजलूमों और वंचितों के अधिकारों के लिए अपनी आवाज़ बुलंद की थी। यही वजह थी कि उनकी सोच और सिद्धांत आज उनके बेटे की क़लम और वकालत में भी झलकते हैं। इससे पहले तन्ज़ीम 2024 में स्कूल ऑफ ला में प्रेसिडेंट के चुनाव में भी हाथ आजमा चुके हैं, जिसमें 1080 वोट pakar दुसरे स्थान पर रहे थे.

तन्ज़ीम भावुक होते हुए कहते हैं, "आज अगर मेरे वालिद साहब होते, तो उन्हें मुझसे ज़्यादा गर्व खुद पर होता कि उनका सपना, उनका मिशन आज अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की आवाज़ बन रहा है।" गांव की गलियों से निकलकर अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुँचना जितना कठिन होता है, उससे कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है उस ज़मीन से जुड़े रहना जहाँ से आप निकले हैं। तन्ज़ीम अकरम ने न सिर्फ़ अपने परिवार का नाम रौशन किया, बल्कि अपने गांव और क्षेत्र का भी गौरव बढ़ाया है। यह मेरी अकेले की कामयाबी नहीं है। यह मेरे वालिद साहब का सपना था, मेरी मां का जुनून और दुआएं, और मेरे भाइयों का सम्पूर्ण सहयोग एवं मेरे गांव तथा क्षेत्रवासियों की दुआओं का नतीजा है। "सपने वही देखो जो सिर्फ़ आंखों को नहीं, दिल को भी बेचैन करें। और उन्हें पाने के लिए मेहनत, सब्र और परिवार की दुआ चाहिए होती है।"

संविधान के लिए प्रतिबद्धता
अपने पिता के इन्हीं सिद्धांतों को आदर्श मानते हुए तन्ज़ीम अकरम ने हाल ही में उत्तराखंड में पारित यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की थी, जिसमें उन्होंने इसे संविधान के मूलभूत अधिकारों के विरुद्ध बताया है।

अब वैश्विक मंच पर भारत की आवाज़
अब यह भी गर्व की बात है कि तन्ज़ीम अकरम आने वाली संयुक्त राष्ट्र परिषद (United Nations Council) की शिखर बैठक (Summit) में भारत का प्रतिनिधित्व करने जा रहे हैं। यह केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे गांव, ज़िले और राज्य की उपलब्धि है।



No comments:

Post a Comment

Your Ads Here

Your Ads Here